संजीव

संजीव

संजीव 38 वर्षों तक एक रासायनिक प्रयोगशाला, 7 वर्षों तक 'हंस' समेत कई पत्रिकाओं के सम्पादन और स्तम्भ-लेखन से जुड़े संजीव का अनुभव संसार विविधता से भरा हुआ है, साक्षी हैं उनकी प्रायः 150 कहानियाँ और 12 उपन्यास। इसी विविधता और गुणवत्ता ने उन्हें पाठकों का चहेता बनाया है। इनकी कुछ कृतियों पर फिल्में बनी हैं, कई कहानियाँ और उपन्यास विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में हैं। अपने समकालीनों में सर्वाधिक शोध भी उन्हीं की कृतियों पर हुए हैं। 'कथाक्रम', ‘पहल’, 'अन्तरराष्ट्रीय इन्दु शर्मा', 'सुधा-सम्मान' समेत अनेक पुरस्कारों से सम्मानित... । नवीनतम है हिन्दी साहित्य के सर्वोच्च सम्मानों में से एक इफको का श्रीलाल शुक्ल स्मृति साहित्य सम्मान-2013। अगर कथाकार संजीव की भावभूमि की बात की जाये तो यह उनके अपने शब्दों में ज्यादा तर्कसंगत, सशक्त और प्रभावी होगा- “मेरी रचनाएँ मेरे लिए साधन हैं, साध्य नहीं । साध्य है मानव मुक्ति ।” सम्प्रति : स्वतन्त्र लेखन

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