
सुनीता बुद्धिराजा
सुबह उठकर बिना कुछ लिखे हुए सुनीता बुद्धिराजा के दिन की शुरुआत नहीं होती और रात को बिना कुछ पढ़े हुए नींद नहीं आती। किताबों से घिरे हुए कमरे में उठना-बैठना सुनीता को अच्छा लगता है। ज़िन्दगी की किताब का हर पन्ना सुनीता को भी कुछ न कुछ सिखाता है लेकिन सीख कर भी सभी कुछ पर भरोसा करना, विश्वास करना, सुनीता की आदत है। जीवन के हर आन्दोलन को महसूस करना भी सुनीता की आदत है। सुनीता का सारा लेखन इसी भरोसे, विश्वास और महसूसने की नींव पर टिका हुआ है। दिल्ली में जन्मी सुनीता बुद्धिराजा की कविताएँ, लेख, संगीत-चर्चा सभी कुछ इसी आदत का परिणाम हैं। ‘आधी धूप’, ‘अनुत्तर’ और अब ‘प्रश्न-पांचाली’, सभी ने पाठकों के मन को छुआ है। ‘प्रश्न-पांचाली’ महाभारतीय पात्र द्रौपदी को केन्द्र में रखकर उसी विश्वास की पतली-डोर को पकड़कर लिखा गया कविता-खंड है जिसने नाटककार दिनेश ठाकुर को मंच पर उतारने के लिए बाध्य कर दिया। ‘टीस का सफ़र’ जानी-मानी महिलाओं की निजता के अकेलेपन से उभरी टीस का परिणाम है तो ‘सात सुरों के बीच’ उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ, पं. किशन महाराज, पं. जसराज, मंगलम पल्ली बालमुरली कृष्ण, पं. शिवकुमार शर्मा, पं. बिरजू महाराज तथा पं. हरिप्रसाद चौरसिया के साथ वर्षों की गयी चर्चाओं पर आधारित सुरीली रचना है। आजकल सुनीता बुद्धिराजा संगीत मार्तंड पंडित जसराज की जीवनगाथा लिख रही हैं। पेशे से जनसम्पर्क से जुड़ी सुनीता ‘किंडलवुड कम्युनिकेशंस’ चला रही हैं।