
गरिमा श्रीवास्तव
जे एन यू के भारतीय भाषा केन्द्र में बतौर प्रोफ़ेसर कार्यरत, स्त्रीवादी चिन्तक प्रो. गरिमा श्रीवास्तव किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। साहित्य और समाजविज्ञान की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित इनका शोधपरक लेखन गम्भीर अध्येताओं का ध्यान अलग से आकर्षित करता है। प्रो. गरिमा श्रीवास्तव ने युद्ध आर युद्ध के बाद की स्थितियों को स्त्रीवादी नज़रिये से देखने का जो प्रयास किया है वह हिन्दी भाषा एवं साहित्य की दुनिया में विरल है। इन्होंने दुनिया-भर में हुए युद्ध को देखने और समझने के लिए एक अलग सैद्धान्तिकी विकसित की है जिसके अनुसार युद्ध भले पृथ्वी के किसी ख़ास भूभाग पर लड़ा जाता हो लेकिन अन्ततः वह घटित होता है स्त्री की देह पर। उनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं: आउशवित्ज़ : एक प्रेम कथा (उपन्यास) (2023), हिन्दी नवजागरण : इतिहास, गल्प और स्त्री-प्रश्न (2023), चुप्पियाँ और दरारें (2022), देह ही देश (2018), किशोरीलाल गोस्वामी (2016), झूठ का थैला : क्रोएशिया की लोक कथाएँ (2013), लाला श्रीनिवासदास (2007), भाषा और भाषा विज्ञान (2006), 'ऐ लड़की' में नारी चेतना (2003), आशु अनुवाद (2003), हिन्दी उपन्यासों में बौद्धिक विमर्श (1999) | सम्पादित पुस्तकें : उपन्यास का समाजशास्त्र (2023), हरदेवी का यात्रा-वृत्तान्त (2022), ज़ख़्म, फूल और नमक (2017), हृदयहारिणी (2015), लवंगलता (2015), वामाशिक्षक (2008), आधुनिक हिन्दी कहानियाँ (2004), आधुनिक हिन्दी निबन्ध (2004), हिन्दी नवजागरण और स्त्री श्रृंखला में सात पुस्तकें (2019 ) : 1. महिला मृदुवाणी, 2. स्त्री समस्या, 3. हिन्दी की महिला साहित्यकार, 4. हिन्दी काव्य की कलामयी तारिकाएँ, 5. स्त्री-दर्पण, 6. हिन्दी काव्य की कोकिलाएँ, 7. स्त्री कवि संग्रह। अनूदित पुस्तकें : ए वैरी ईज़ी डेथ (सिमोन द बोउवार) अनुवाद गरिमा श्रीवास्तव, ब्राज़ीली कहानियाँ।