नरेंद्र मोहन

नरेंद्र मोहन

नरेन्द्र मोहन - एक साथ कई साहित्यिक विधाओं और माध्यमों में सृजनशील रहने वाले हिन्दी के प्रमुख कवि, नाटककार और आलोचक। जन्म: 30 जुलाई, 1935, लाहौर। अपनी कविताओं (कविता संग्रह) 'इस हादसे में','सामना होने पर', 'एक अग्निकांड जगहें बदलता', 'हथेली पर अंगारे की तरह', 'संकट दृश्य का नहीं', 'और एक सुलगती ख़ामोशी', 'एक खिड़की खुली है अभी', 'नीले घोड़े का सवार' और नाटकों—'कहै कबीर सुनो भाई साधो', 'सींगधारी', 'कलन्दर', 'नो मैंस लैंड', 'अभंगगाथा', 'मि. जिन्ना', 'मंच अँधेरे में' और 'हद हो गयी, यारो' द्वारा उन्होंने कविता और नाटक की नयी परिकल्पना को विकसित किया है। नयी रंगत में ढली उनकी डायरी रचना 'साथ-साथ मेरा साया' ने इस विधा को नये मायने दिये हैं, नये चिन्तन को उकसाया है। नरेन्द्र मोहन ने अपनी आलोचना पुस्तकों और सम्पादन कार्यों द्वारा सृजन और समीक्षा के नये आधारों की खोज करते हुए नये काव्य माध्यमों (लम्बी कविता), नवीन, प्रवृत्तियों (विचार कविता) नये विमर्श (विभाजन, विद्रोह और साहित्य) को भी रेखांकित किया है। हिन्दी कविता, कहानी और उपन्यास पर उनकी आलोचना पुस्तकें व्यापक चर्चा का विषय बनी हैं। 'मंटो की कहानियाँ' और 'मंटो के नाटक' उनको सम्पादन प्रतिभा के परिचायक हैं। उनके नाटक, डायरी और कविताएँ भारतीय भाषाओं और अंग्रेज़ी में भी अनूदित एवं प्रकाशित हैं। ये कई राष्ट्रीय सम्मानों से अलंकृत साहित्यकार हैं। आठ खण्डों में 'नरेन्द्र मोहन रचनावली' प्रकाशित हो चुकी है।

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