महाराजा विश्वनाथ सिंह

महाराजा विश्वनाथ सिंह

महाराजा विश्वनाथ सिंह - महाराजा विश्वनाथ सिंह रीवा के विद्यार्थी और भक्त नरेश तथा प्रसिद्ध कवि महाराज रघुराज सिंह के पिता थे। सम्वत् 1778 से लेकर 1797 तक रीवा की गद्दी पर रहे। जिस तरह वे ईश्वर की भक्ति के लिए जाने जाते थे उसी तरह ही काव्य रचना में भी सिद्धहस्त थे। यद्यपि वे राम के परम उपासक थे लेकिन कुल की परम्परा के अनुसार निर्गुण सन्त की वाणी का भी आदर करते थे। ब्रज भाषा में नाटक लिखने का श्रेय इन्हें ही जाता है। इस दृष्टि से महाराजा विश्वनाथ सिंह द्वारा रचित नाटक 'आनन्द रघुनन्दन' साहित्य के परिप्रेक्ष्य से विशेष महत्व रखता है। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने इस नाटक को हिन्दी भाषा का प्रथम नाटक माना है। यद्यपि इसमें पदों की प्रचुरता है लेकिन संवाद ब्रजभाषा में है। इस नाटक में अंक विधान और पात्र विधान भी है। हिन्दी के प्रथम नाटककार के रूप महाराजा विश्वनाथ सिंह चिरस्मरणीय हैं। सम्पादक - रामनिरंजन परिमलेन्दु - जन्म: 24 अगस्त, 1935। बी.आर.ए. बिहार विश्वविद्यालय, मुज़फ़्फ़रपुर (बिहार) से प्रोफ़ेसर पद से सेवानिवृत्त। लेखन कार्य: 1953 से अब तक भारत की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में विभिन्न विधाओं में सहस्राधिक रचनाओं का प्रकाशन हुआ। भारतेन्दु काल के भूले-बिसरे कवि और उनका काव्य, भारतेन्दु काल का अल्पज्ञात हिन्दी गद्य साहित्य आदि अनेक कालजयी ग्रन्थों के मान्य लेखक। हिन्दी साहित्य का इतिहास विशेषतया उन्नीसवीं शताब्दी का सम्पूर्ण हिन्दी साहित्य, हिन्दी पत्रकारिता का इतिहास, देवनागरी लिपि आन्दोलन का इतिहास, राष्ट्रलिपि, उन्नीसवीं शताब्दी के हिन्दी गद्य की विभिन्न विधाएँ, हिन्दी के आरम्भिक उपन्यास, भारत में सार्वजनीन लिपि की अवधारणा का इतिहास और उसमें हिन्दीतर भाषियों का योगदान। हिन्दी साहित्य के इतिहास की टूटी कड़ियों को जोड़ने हेतु सक्रिय।

Books from the Author

Subscribe to Padhega India Newsletter!

Step into a world of stories, offers, and exclusive book buzz- right in your inbox! ✨

Subscribe to our newsletter today and never miss out on the magic of books, special deals, and insider updates. Let’s keep your reading journey inspired! 🌟