
कामता प्रसाद गुरु
कामताप्रसाद गुरु - कामताप्रसाद गुरु हिन्दी भाषा के लब्धप्रतिष्ठ वैयाकरण तथा साहित्यकार थे। हिन्दी भाषा के व्याकरण के ज्ञाता होने के कारण ही उन्हें 'हिन्दी व्याकरण' पुस्तक को अस्तित्व में लाने का श्रेय जाता है। उनका जन्म सागर (मध्य प्रदेश) हुआ था। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक 'हिन्दी व्याकरण' का कई विदेशी भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है। गुरु जी की असाधारण ख्याति उनकी अन्य साहित्यिक कृतियों से नहीं बल्कि उनके द्वारा रचित बहुचर्चित व शोधपरक पुस्तक 'हिन्दी व्याकरण' के कारण है। यह हिन्दी भाषा का सबसे बड़ा और प्रामाणिक व्याकरण माना जाता है। सन् 1920 में लगभग एक वर्ष तक उन्होंने इंडियन प्रेस से प्रकाशित ‘बालसखा’ तथा ‘सरस्वती’ पत्रिकाओं का सम्पादन किया। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे और उन्हें अनेक भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। उन्होंने अनेक उपन्यास, खण्डकाव्य का सर्जन किया और ब्रजबोली-सहित अनेक भाषाओं में रचनाकर्म किया। कामता प्रसाद गुरु का वैयाकरण रूप इतना प्रबल था कि वे हिन्दी व्याकरण के पाणिनि कहे जाने लगे। हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग ने उन्हें 'साहित्य वाचस्पति' की उपाधि से विभूषित किया था। उन्होंने सात वर्षों तक अध्यवसाय करके हिन्दी का प्रथम प्रामाणिक व्याकरण लिखा था। नागरी प्रचारिणी सभा की व्याकरण संशोधन समिति ने उनकी व्याकरण की प्रशंसा की। हिन्दी-व्याकरण के क्षेत्र में उनका नाम विश्वप्रसिद्ध है। उनकी धारणा थी कि भाषा को नियमबद्ध करने के लिए व्याकरण नहीं बनाया जाता, वरन् भाषा पहले बोली जाती है, उसके आधार पर व्याकरण की उत्पत्ति होती है। वे हिन्दी-जगत् के लिए आज भी आदर्श हैं।