
Narmada Prasad Upadhyay I Mohammad Harun Rashid Khan
कुबेरनाथ राय - 26 मार्च 1933 को उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ीपुर जिले के मतसा ग्राम में माता श्रीमती लक्ष्मी देवी व पिता श्री वैकुण्ठ राय के यहाँ जन्मे श्री कुबेरनाथ राय ने अंग्रेज़ी में कोलकाता विश्वविद्यालय से एम.ए. कर, निरन्तर वर्ष 1959 से 1986 तक नलबारी महाविद्यालय, असम में अंग्रेज़ी के प्राध्यापक के रूप में कार्य किया। उसके पश्चात् अपने महाप्रयाण तक वे स्वामी सहजानन्द महाविद्यालय, गाज़ीपुर में प्राचार्य रहे तथा दिनांक 5 जून 1996 को उनका आकस्मिक निधन हुआ। ‘कंथा-मणि' जैसी इकलौती काव्यकृति के अलावा उनके द्वारा अपने जीवनकाल में 16 कृतियों का सृजन किया गया जो मुख्यतः ललित निबन्ध की कृतियाँ हैं। उनके निधन के पश्चात् उनकी अनेक कृतियाँ प्रकाश में आयीं जिनमें 'रामायण महातीर्थम्' जैसी अप्रतिम कृति सम्मिलित है। उनकी पहली कृति ‘प्रिया नीलकण्ठी' ने हिन्दी जगत में ललित निबन्ध के लेखन के क्षेत्र में अनुपम इतिहास रचा। वे ललित निबन्ध और व्यक्तिव्यंजक निबन्ध के पुरोधा व्यक्तित्व के रूप में जाने जाते हैं तथा आधुनिक काल में, ललित निबन्धकारों की महान त्रयी जिनमें आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, विद्यानिवास मिश्र तथा कुबेरनाथ राय हैं, में एक उज्ज्वल कृतिकार के रूप में वे सम्मिलित हैं। भारत शासन के द्वारा उनके निधन के पश्चात् उनकी स्मृति में डाक टिकट भी जारी किया गया है। उन्होंने इस विधा को एक अभिनव भंगिमा दी। भारतीय ज्ञानपीठ के ‘मूर्तिदेवी पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कारों व अलंकरणों से श्री कुबेरनाथ राय की प्रतिभा सम्मानित है। ★★★ नर्मदा प्रसाद उपाध्याय - 30 जनवरी 1952 को पावन नर्मदा तट पर अवस्थित हरदा (म.प्र.) में श्री ब्रजमोहन उपाध्याय व श्रीमती शान्तिदेवी के यहाँ जन्मे नर्मदा प्रसाद उपाध्याय विगत लगभग 50 वर्षों से साहित्य, कला तथा संस्कृति के विभिन्न अनुशासनों के अध्ययन व उनसे जुड़े विभिन्न विषयों पर सर्जनात्मक रूप से सक्रिय हैं। वे वाणिज्यिक कर विभाग के विभिन्न पदों पर 40 वर्षों तक कार्यरत रहकर वर्ष 2015 में सदस्य, मध्य प्रदेश वाणिज्यिक कर अपील बोर्ड के पद से सेवानिवृत्त हुए। इंग्लैंड, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया तथा दक्षिण कोरिया सहित अनेक देशों के संग्रहालयों, विश्वविद्यालयों व कलावीथियों में उन्होंने प्रस्तुतीकरण तथा व्याख्यान दिये हैं। निबन्धकार, समीक्षक, संस्कृतिविद् तथा भारतीय कला के विभिन्न अनुशासनों के विशेषकर भारतीय लघुचित्र परम्परा तथा कला व साहित्य के अन्तःसम्बन्धों के विचारक श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय की इस क्षेत्र में अन्तरराष्ट्रीय ख्याति है। उनकी 7 सम्पादित, 2 अनूदित, 16 निबन्ध संग्रह तथा 24 कला-केन्द्रित कृतियाँ हैं। उन्हें ब्रिटिश काउंसिल की प्रतिष्ठित फैलोशिप सहित शिमेंगर लेडर (जर्मनी) व धर्मपाल शोधपीठ की सीनियर फैलोशिप भी प्राप्त हुई हैं। उन्हें देश-विदेश में अनेक पुरस्कारों व सम्मानों से अलंकृत किया गया है जिनमें उ.प्र. हिन्दी संस्थान का 'कलाभूषण', म.प्र. शासन के अखिल भारतीय 'शरद जोशी' व 'कुबेरनाथ राय' सम्मानों सहित केन्द्रीय हिन्दी संस्थान का 'महापण्डित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार' सम्मिलित हैं। उनके द्वारा किये गये भित्तिचित्रों के दस्तावेज़ीकरण पर केन्द्रित कृति 'मालवा के भित्तिचित्र' को हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ प्रकाशन के लिए वर्ष 2022 में महामहिम उपराष्ट्रपति महोदय के द्वारा पुरस्कृत किया गया है। वर्तमान में वे इन्दौर में रहकर स्वतन्त्र लेखन कर रहे हैं। ★★★ मुहम्मद हारून रशीद ख़ान - 5 जुलाई 1969 को ग़ाज़ीपुर में जन्मे मुहम्मद हारून रशीद ख़ान हिन्दी में एम.ए. हैं तथा उन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि भी प्राप्त की है। वे प्रो. कुबेरनाथ राय के शिष्य व स्नेहभाजन रहे हैं। कुबेर जी के रचनाकर्म पर उन्होंने 'कुबेरनाथ राय की दृष्टि में स्वामी सहजानन्द', सरस्वती, ‘धर्मनिरपेक्षता बनाम राष्ट्रीय संस्कृति (चयनित-निबन्ध) कुबेरनाथ राय' सहित 'रस-आखेटक' के चयनित निबन्धों का सम्पादन किया है। उन्होंने ‘रचनाओं पर चिन्तन' शीर्षक आलोचना की कृति का लेखन किया है तथा 'सृजनपथ के पथिक' और 'मेरी गुफ़्तगू है अदीबों से' जैसी कृतियाँ साक्षात्कार विधा के अन्तर्गत लिखी हैं जिसमें देश के शीर्षस्थ हिन्दी रचनाकारों के साक्षात्कार सम्मिलित हैं। प्रख्यात आलोचक श्री पी. एन. सिंह के कृतित्व पर भी उनकी पुस्तक प्रकाशित है। वर्तमान में वे ग़ाज़ीपुर में निवास कर शिक्षण कार्य सम्पन्न कर रहे हैं और स्वतन्त्र लेखन कर रहे हैं।