पूजा के अंत में आरती करने का विधान है। पूजा करते समय जो भूलचूक रह जाती हैं, आरती से उनकी पूर्ति होती है। पूजा करते समय मंत्रहीन और क्रियाहीन होने पर भी उसमें पूर्णता आ जाती है। आरती करने एवं आरती देखने से भी बहुत पुण्य मिलता है। जो जन धूप और आरती को देखते हैं और दोनों हाथों से आरती लेते हैं, वे अपनी पीढ़ियों का उद्धार करते हैं और परम पद को प्राप्त करते हैं।
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