अक्षरों के साये में अमृता प्रीतम की आत्मकथा रसीदी टिकट का दूसरा भाग है। यह केवल एक आत्मकथा ही नहीं,बल्कि एक बिल्कुल नए, अध्यात्म से जुड़े धरातल पर उसका विवरण प्रस्तुत करती है। बचपन से आज तक के अपने जीवन के सभी अध्यायों और अनुभवों को वह किसी न किसी साये के तले जिया गया मानती हैं - जैसे जन्म लेते ही मौत के साये, फिर हथियारों, अक्षरों, सपनों, स्याह ताकतों और चिंतन के साये - और यह पाठक के सामने एक नितांत नवीन दुनिया के भीतर झांककर देखने की उनकी अदम्य इच्छा को व्यक्त करता है। अनेक दृष्टियों से यह साहित्य की एक विशिष्ट रोमांचक आत्मकथा है, जिसे बचपन से आजतक के उनके क्रमवार फ़ोटो-चित्र दृष्टि के स्तर पर भी उनकी अपनी छाया को उद्भासित करते नज़र आते हैं।
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Amrita PritamAdd a review
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