अक्षयवट हिन्दी की प्रख्यात कथा लेखिका नासिरा शर्मा का नवीनतम उपन्यास है। दरअसल अक्षयवट प्रतीक है उस अविराम भावधारा का उस अक्षर विरासत का, जिसका शहर इलाहाबाद की धमनियों में निरन्तर विस्तार है। कहना होगा कि नासिरा जी के इस अक्षयवट उपन्यास में इलाहावाद शहर अपने सारे नये-पुराने चटक-मद्धिम रंगों और आयामों के साथ जीवन्त रूप में उपस्थित है। इसमें शहर की धड़कन में रची-बसी ऐसी युवा जिन्दगियों की मर्मस्पर्शी कहानी है जो विरासत में मिली तमाम उपलब्धियों के बावजूद वर्तमान व्यवस्था की सहाय और आपाधापी में अवसाद-भरी जिन्दगी जीने के लिए अभिशप्त हैं। निस्सन्देह नासिरा शर्मा ने अपने इस उपन्यास के माध्यम से जीवन की गहन जकड़न और समय की विसंगतियों को पहचानने और उनसे मुठभेड़ करने की कोशिश की है।... वास्तव में अक्षयवट को पढ़ना एक बनती-बिगड़ती और बदरंग होती सभ्यता से साक्षात्कार करना भी है।
नासिरा शर्मा - 1948 में इलाहाबाद (उ. प्र.) में जन्मी नासिरा शर्मा को साहित्य के संस्कार विरासत में मिले। फ़ारसी भाषा साहित्य में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से एम.ए. किया हिन्दी, उर्दू, फारसी, अंग्रेज़ी और पश्तो भाषाओं पर उनकी गहरी पकड़ है। वह ईरानी समाज और राजनीति के अतिरिक्त साहित्य, कला और संस्कृति विषयों की विशेषज्ञ हैं। इराक़, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, सीरिया तथा भारत के राजनीतिज्ञों तथा प्रसिद्ध बुद्धिजीवियों के साथ साक्षात्कार किये जो बहुचर्चित हुए। युद्ध बन्दियों पर जर्मन व फ्रांसीसी दूरदर्शन के लिए बनी फ़िल्म में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। साथ ही साथ स्वतन्त्र पत्रकारिता में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। उपन्यास बहिश्ते-ज़हरा, शाल्मली, ठीकरे की मंगनी, ज़िन्दा मुहावरे, अक्षयवट, कुइयाँजान, ज़ीरो रोड, पारिजात, काग़ज की नाव, अजनबी जजीरा, शब्द पखेरू, दूसरी जन्नत, कहानी संग्रह शामी काग़ज़, पत्थरगली, इब्ने मरियम, संगसार, सबीना के चालीस चोर, ख़ुदा की वापसी, दूसरा ताजमहल, इन्सानी नस्ल, बुतख़ाना, रिपोर्ताज़ - जहाँ फौव्वारे लहू रोते हैं; संस्मरण यादों के गलियारे; लेख संग्रह किताब के बहाने, राष्ट्र और मुसलमान, औरत के लिए औरत, औरत की आवाज़, औरत की दुनिया; अध्ययन अफ़ग़ानिस्तान बुज़क़शी का मैदान, मरजीना का देश इराक़ अनुवाद : शाहनामा-ए-फ़िरदौसी, काइकोज आफ़ इरानियन रेवुलूशन : प्रोटेस्ट पोयट्री, बर्निंग पायर, काली छोटी मछली (समदबहुरंगी की कहानियाँ); इसके अलावा 6 खण्डों में अफ्रो-एशिया की चुनी हुई रचनाएँ, निजामी गंजवी, अत्तार, मौलाना रूमी की चुनी हुई मसनवियों और 'क़िस्सा जाम का' (खुरासान की लोककथाएँ) का अनुवाद; नाटक पत्थर गली, सबीना के चालीस चोर, दहलीज़, इब्ने मरियम, प्लेटफार्म नम्बर सात; बाल साहित्य : भूतों का मैकडोनल, दिल्लू दीमक (उपन्यास), दर्द का रिश्ता, गुल्लू, नवसाक्षरों के लिए धन्यवाद धन्यवाद, पढ़ने का हक़, गिल्लो बी, सच्ची सहेली, एक थी सुल्ताना, टी.वी. फ़िल्म व सीरियल : तड़प, माँ काली मोहिनी, आया वसंत सखी, सेमल का दरख्त (टेलीफ़िल्म), शाल्मली, दो बहनें, वापसी (सीरियल)।
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