अमरकान्त की सम्पूर्ण कहानियाँ भाग - अमरकान्त का रचनाकाल 1954 से लेकर आज तक है, उनकी क़लम न रुकी, न झुकी। उनके साथ के कई रचनाकार थक-चुक कर बैठ गये, कुछ निजी पत्रकारिता में चले गये तो कुछ मौन हो गये, किन्तु अमरकान्त ने अपनी निजी परेशानियों को कभी लेखन पर हावी नहीं होने दिया, उन्होंने हर हाल में लिखा। उन्होंने लेखन को जिजीविषा दी अथवा लेखन ने उन्हें, यह विचारणीय प्रश्न है। इस प्रसंग में अमरकान्त की रचनात्मकता की सहज सराहना करने का मन होता है कि उन्होंने समय समाज को संहारक या विदारक बनने की बजाय विचारक बनाया। अमरकान्त के लिए लेखन एक सामाजिक दायित्व है। वे मानते हैं कि लेखन समय और धैर्य की माँग करता हैं। उनकी शीर्ष कहानी पढ़ने पर प्रमाणित होगा कि आरम्भ से ही इस रचनाकार ने अप्रतिम सहजता के साथ-साथ सजगता से भी इन कहानियों की रचना की। 'डिप्टी कलक्टरी', 'दोपहर का भोजन', 'ज़िन्दगी और जोंक', 'हत्यारे', 'मौत का नगर', 'मूस', 'असमर्थ हिलता हाथ' बड़ी स्वाभाविक और जीवनोन्मुख कहानियाँ हैं। सहज सरल कलेवर में लिपटी ये कहानियाँ जीवन की घनघोर जटिलताएँ व्यक्त कर डालती हैं। अपने समग्र प्रभाव व प्रेषण में ये रचनाएँ हमें देर तक सोचने के लिए विवश कर देती हैं। दो खण्डों में प्रस्तुत एक हज़ार से अधिक पृष्ठों का यह संकलन रचनाकार अमरकान्त की कहानियों का सम्पूर्ण कोश है, जो उनके बृहद् कथा लेखन के सरोकारों और चिन्ताओं और दृष्टि को समझने में महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगा।
अमरकान्त - 1 जुलाई, 1925 को उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले के भगमलपुर (नगरा) गाँव में जनमे अमरकान्त अपनी शिक्षा अधूरी छोड़कर 1942 के 'अंग्रेज़ों, भारत छोड़ो' स्वाधीनता आन्दोलन से जुड़ गये। आधुनिक हिन्दी कथा-साहित्य के निर्माण में अमरकान्त का नाम सर्वोपरि है। उनका सम्पूर्ण कथा संसार भारत के उत्तर-औपनिवेशिक यथार्थ की ज़मीन को संस्कारित कर अपने रचनात्मक विमर्श के शिल्प को वैशिष्ट्य और मौलिकता की गरिमा प्रदान करता है। 'ज़िन्दगी और जोंक' से लेकर उनके अब तक एक दर्जन कहानी-संग्रह प्रकाशित हैं। प्रमुख हैं— 'मौत का नगर', 'कुहासा', 'तूफ़ान', 'एक धनी व्यक्ति का बयान', 'सुख और दुःख का साथ', 'औरत का क्रोध'। उपन्यास लेखन में भी उनकी दृष्टि और शैली समानधर्मा रही है। उनके ग्यारह उपन्यासों में 'सूखा पत्ता', 'काले उजले दिन', 'बीच की दीवार', 'आकाशपक्षी', 'इन्हीं हथियारों से', 'बिदा की रात' प्रमुख हैं। उनके कथा-पात्रों को ज़िन्दगी की बारीक़ मनोगत समस्याओं से उलझने और दार्शनिक चिन्तन करने का वक़्त नहीं, वे रोज़मर्रा की ठेठ चुनौतियों का समाधान कर जीवन को बचाये रखने की चिन्ता से ग्रस्त होते हैं। अमरकान्त की भाषा में माटी का सहज स्पर्श और सौंधी गन्ध इस तरह रची-बसी है कि पाठक मन्त्रमुग्ध हो उठता है। कुछेक संस्मरण और बाल साहित्य भी उनकी लेखनी से निःसृत हुए हैं। श्री अमरकान्त अब तक ज्ञानपीठ पुरस्कार, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का पुरस्कार, यशपाल पुरस्कार, जन संस्कृति सम्मान, मध्य प्रदेश का 'अमरकान्त कीर्ति सम्मान', साहित्य अकादेमी सम्मान आदि से अलंकृत हो चुके हैं।
अमरकांतAdd a review
Login to write a review.
Customer questions & answers