अंधेरे में हँसी - \nएक संघर्ष भरी ज़िन्दगी के बीच जीने की जद्दोजहद योगेन्द्र आहूजा की कहानियों की विशेषता है। उनकी कहानियाँ उजाले में आने की आकांक्षा में मानो किसी अँधेरी सुरंग में यात्रा करने की भयावहता का दास्तान सुनती हों। साहित्य जगत् के कुछ महत्वपूर्ण पात्रों की कहानियों में उपस्थिति जैसे यही बताती हो कि पाठक इन्हें सिर्फ़ स्वप्न-कथा ही नहीं समझे बल्कि वह सृजनशील लोगों और चिन्तकों द्वारा किये जा रहे प्रतिरोध की सच्चाई को भी महसूस करे।\nयोगेन्द्र आहूजा अपने लेखन में क्लाइमेक्स तक पहुँचने की जल्दबाज़ी में नहीं दिखते। शास्त्रीय गायक की तरह दूर तक ले जाते हैं। गन्तव्य की तलाश में वे प्रायः अपने पाठकों को भूलभुलैया में डाल देते हैं, यह भी उनकी कला है। वे इसके ज़रिये जीवन के उलझाव को रेखांकित करते हैं।\nहक़ीक़त को बयान करनेवाली इन कहानियों में अँधेरे से उलझते हुए भी शोषण से मुक्ति का स्वप्न नज़र आता है। निश्छल सामाजिकता की उजली इबारत पर स्याही फेरनेवाले जन विरोधी लोगों के अँधेरे के विरुद्ध योगेन्द्र आहूजा की कहानियाँ ज़ोर से हँसती नज़र आती हैं।
योगेन्द्र आहूजा - जन्म: 1 दिसम्बर, 1959, बदायूँ (उत्तर प्रदेश) में। प्रारम्भिक शिक्षा काशीपुर (नैनीताल) में। 1980 में बरेली कॉलेज, बरेली से एम.ए. (अर्थशास्त्र)। पुरस्कार सम्मान: 'ग़लत' कहानी के लिए 1999 का 'कथा' पुरस्कार। वर्ष 2003 का 'परिवेश' सम्मान।
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