अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की एक शाखा के रूप में अनुवाद सिद्धान्त एक अपेक्षाकृत नवीन ज्ञानक्षेत्र है। इसके दो विशिष्ट सन्दर्भ हैं-पाठसंकेतविज्ञान (टेक्स्ट सिमियॉटिक्स) तथा सम्प्रेषण सिद्धान्त-जिनकी भूमिका पर इस पुस्तक में, अनुवाद सिद्धान्त को एक बहुविद्यापरक और अपेक्षाकृत स्वायत्त अनुशासन के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसकी दूसरी विशेषता है सीमित आकार में अनुवाद सम्बन्धी लगभग सभी मुद्दों का सैद्धान्तिक विवेचन अनुवाद क्या है, कितने प्रकार का है, कैसे होता है, अनुवाद कैसे करें, कैसे जाँचें कैसे सिखाएँ इस सबका सिद्धान्तपुष्ट विवेचन इस पुस्तक में मिलेगा, सम्भवतः हिन्दी में पहली बार अनुवाद सिद्धान्त के उच्चस्तरीय छात्रों तथा विषय में रुचि रखनेवाले अन्य गम्भीर पाठकों के लिए यह पुस्तक समान रूप से उपादेय है।
डॉ. सुरेश कुमार जन्म 1987 | शिक्षा: गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार, दिल्ली विश्वविद्यालय, आगरा विश्वविद्यालय तथा डेक्कन कालेज स्नातकोत्तर एवं शोध संस्थान, पुणे। हिन्दी में आधुनिक शैलीविज्ञान तथा पाठसिद्धान्त के विशेषज्ञों में अग्रणी इन विषयों पर विगत पच्चीस वर्षों में हिन्दी व अंग्रेजी में अनेक शोधलेखों और ग्रन्थों का प्रकाशन। प्रमुख प्रकाशन : लिखित शैलीविज्ञान (1977), शैलीविज्ञान और प्रेमचन्द की भाषा (1978), हिन्दी इन एडवरटाइजिंग (1978) (जापानी में अनूदित 1987), स्टाइलिस्टिक्स एण्ड लॅग्वेज टीचिंग (1988) सम्पादित स्टाइलिस्टिक्स एण्ड टेक्स्ट एनालिसिस (1987, पु.मु. 1991), आधुनिक एकांकी संग्रह (सं. 1992), आधुनिक निबन्ध संग्रह (सं. 1992 ) । सह-सम्पादित- शैली और शैलीविज्ञान (1976), इण्डियन बाइलिंगुअलिज्म (1977) सम्पादक- गवेषणा (1984-91), प्रधान सम्पादक- इण्डियन लिंग्विस्टिक्स ( 1991-96) | सम्प्रति: केन्द्रीय हिन्दी संस्थान (मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार) आगरा में अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान के प्रोफ़ेसर। सम्पर्क : 'प्राची', ई-20, कमला नगर, आगरा-282004
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