अपने अपने राम एक नयी रामकथा नहीं है उस वास्तविक राम की खोज है जो कभी पँवारे के रूप में रचा गया होगा। यह वर्तमान के उस सत्य का भी साक्षात्कार है जिसे राम और रमैया की दुल्हन की आड़ में बाजार लूटने के प्रयत्नों में सामने आ रहा है। यह उस वर्णवाद का भी जवाब है जिसके समर्थन में राम तक को इस्तेमाल कर लिया गया, जिनके जीवन का एक-एक आचरण उसे तोड़ने और उससे बाहर निकलने की छटपटाहट से भरा है। यह उपन्यास नहीं है, गद्य में लिखा गया एक महाकाव्य है। उपन्यास की बारीकियों का इसमें अभाव है। महाकाव्य की गरिमा का इसमें इतना सफल निर्वाह है कि पाठक को लगे, प्रामाणिक रामायण तो वह पहली बार पढ़ रहा है। यह अपने अतीत को और उसके चतुर्दिक रचे गये आभा-मंडल को भेद कर एक नया आलोकमंडल तैयार करने का प्रयत्न है। इसमें वे सच्चाइयाँ उजागर होती हैं जो आभामंडल में दबी रह गयी थीं।
भगवान सिंह भगवान सिंह का जन्म 1 जुलाई 1931 को गोरखपुर के एक गाँव में हुआ। उच्च शिक्षा गोरखपुर में सम्पन्न हुई। लेखन और हिन्दी की प्रमुख पत्रिकाओं में प्रकाशन छात्र जीवन से ही जारी रहा। वह भारत सरकार तथा दिल्ली सरकार में लम्बे समय तक हिन्दी के काम से जुड़े रहे।
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