अरी ओ करुणा प्रभामय - \nमहान् साहित्य की परम्परा में 'अज्ञेय' की कृतियाँ भीतर के अशान्त सागर को मथकर अन्तर्जगत् की घटना के प्रत्यक्षीकरण द्वारा जीवन, मरण, दुःख, अस्मिता, समाज, आचार, कला, सत्य आदि के अर्थ का साक्षात्कार कराती हैं। 'अरी ओ करुणा प्रभामय' की कविताएँ भी एक अत्यन्त सूक्ष्म संवेदनशील मानववाद की कविताएँ हैं। ये कविताएँ साक्षी हैं कि 'अज्ञेय' की सूक्ष्म सौन्दर्य-दृष्टि जहाँ जापानी सौन्दर्यबोध से संस्कारित हुई है, वहीं उनकी मानवीय करुणा भी जापानी बौद्ध दर्शन से प्रभावित है। लेकिन यह प्रभाव उस मूल सत्ता का केवल ऊपरी आवेष्टन है, जिसकी ज्वलन्त प्राणवत्ता पहले से ही असन्दिग्ध तो है ही, स्वतःप्रमाण भी है।\nप्रस्तुत है 'अज्ञेय' के इस ऐतिहासिक महत्त्व के कविता-संग्रह का नया संस्करण।
सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' - जन्म: 7 मार्च, 1911 को देवरिया ज़िले के कासिया इलाक़े में, एक शिविर में। प्रारम्भिक शिक्षा जम्मू एवं कश्मीर में। लाहौर में क्रान्तिकारी जीवन की शुरुआत। बाद में दिल्ली में क्रान्तिकारी गतिविधियों का संचालन। अमृतसर में बम कारख़ाना बनाने के लिए पहल करते हुए गिरफ़्तार। जेल से छूटने के बाद क्रान्तिकारी जीवन से संन्यास और साहित्य लेखन एवं पत्रकारिता को पूर्णतः समर्पित। 1965-68 में साप्ताहिक 'दिनमान' का और 1977-79 में 'नवभारत टाइम्स' का सम्पादन। कृतियाँ : 17 कविता-संग्रह, 7 कहानी-संग्रह, 3 उपन्यास, 1 नाटक, 2 यात्रा-वृत्त, 3 डायरियाँ तथा अनेक निबन्ध और पत्र-संकलन प्रकाशित। अनेक कृतियों का सम्पादन तथा कई विदेशी कृतियों का अनुवाद। अनेक रचनाएँ अंग्रेज़ी, जर्मन, स्वीडिश में अनूदित। ज्ञानपीठ पुरस्कार के अतिरिक्त साहित्य अकादेमी पुरस्कार, गोल्डन ब्रेथ अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार आदि अनेक पुरस्कारों से सम्मानित। निधन: 4 अप्रैल, 1987।
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