असहमति - \nहरीश चन्द्र पाण्डे की कविताई का अपना ढब और अपनी रवायत है। इनकी कविताएँ इस संज्ञाहीन रीढ़हीन समय में अपनी ख़ास शख़्सियत के साथ दरपेश होती हैं। यहाँ एक तरफ़ व्यतीत की वर्तमानता है, तो दूसरी तरफ़ भावी समय की भयावह अनुगूँजें भी।\nकई बार प्रतीत होता है कि हरीश चन्द्र पाण्डे चुप्पी के कवि हैं। शब्दों से ठसाठस भरे इस समय में हालाँकि चुप्पी भी एक प्रतिकार है, लेकिन हरीश के यहाँ यह चुप्पी रफ़्ता-रफ़्ता बोलती है। थम-थम कर, अर्थ की वज़न को थाम-थाम कर हरीश को पढ़ते हुए अक्सर शब्दों के बीच का अन्तराल (जिसका ख़ूबसूरत और सुदर्शन प्रयोग वे करते हैं) अपने ख़ालीपने में छल-छल भरा हुआ दिखता है।\nकविता के प्रदेश में नितान्त संग्रहणीय पुस्तक।—कुणाल सिंह
हरीश चन्द्र पाण्डे - जन्म: दिसम्बर 1952, उत्तराखण्ड के सदीगाँव में। शिक्षा: वाणिज्य में स्नातकोत्तर | प्रकाशित कृतियाँ: कविता— 'कुछ भी मिथ्या नहीं है', 'एक बुरुँश कहीं खिलता है', 'भूमिकाएँ ख़त्म नहीं होतीं'। बाल कथा-संग्रह— 'संकट का साथी'। कुछ कविताओं के अनुवाद अंग्रेज़ी, बांग्ला, ओड़िया, पंजाबी आदि में प्रकाशित। कुछेक कहानियाँ व लेख भी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। सम्मान: 'कुछ भी मिथ्या नहीं है' के लिए वर्ष 1995 का 'सोमदत्त सम्मान', 'एक बुरुँश कहीं खिलता है' के लिए उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का 'सर्जना पुरस्कार' (1999), 'केदार सम्मान' (2001) तथा 'ऋतुराज सम्मान' (2004), 'भूमिकाएँ ख़त्म नहीं होतीं' हेतु वर्ष 2006 का 'कविवर हरिनारायण व्यास' सम्मान।
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