असफल आरोप - \nमन में अभियोग पोषण करना मनुष्य का सहजात धर्म है। इसका उत्स है हमारी सत्ता का निगूढ़तम प्रदेश, जो जन्मा है हमारी अपूर्णता से, अभावबोध से, (चाहे सामयिक हो या स्थायी) अपने भीतर घुमड़ रही शून्यता से। उस अनुभव का वैचित्र्य प्रायः कम ही समझा जाता है। सभी अभियोग करते नहीं बनते। कभी-कभी स्वेच्छाकृत भाव से अपने अन्दर छिपाकर रखे जाते हैं तो कभी उन्हें अभियोग करने का अवसर नहीं मिलता। अभियोग अक्सर निरर्थक लगता है, क्योंकि अभियोग प्रायः असफल होता है।\nसमकालीन भारत के दक्षतम कवियों में सीताकान्त महापात्र एक उल्लेखनीय नाम है। उन्होंने पारम्परिक काव्य-शैली और पाश्चात्य प्रभावित शैली में से नयी सम्भावनाओं का सन्धान किया है, नयी काव्य चेतना और नये अभिमुख्य पर जोर दिया है। अतीत और भविष्य को एकत्र कर एक वैकल्पिक यथार्थ का निर्माण कविता के ज़रिये सम्भव है, इसमें उन्हें पूर्ण विश्वास है। वे दुःख और वेदना में भी मानव स्थिति के गहनतम आनन्द की तलाश में हैं, यही कारण है कि वे अपने समय में इलियट व पाउंड, रैम्ब्रा व बॉदलेयर की तरह अपनी संस्कृति के मिथक तथा आर्किटाइप और पारम्परिक प्रतीकों का व्यवहार करते हैं।\nज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित ओड़िया कवि सीताकान्त महापात्र का यह नया काव्य संकलन हिन्दी पाठकों के लिए एक सौगात है।
सीताकान्त महापात्र - 1937 में जनमे सीताकान्त ने उत्कल, इलाहाबाद तथा कैम्ब्रिज विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त की। 1975-77 में होमी भामा फ़ेलोशिप पाकर 'भारतीय आदिम समुदायों की आधुनिकीकरण प्रकिया' का अध्ययन किया। सामाजिक नृतत्त्व विज्ञान में उन्होंने डॉक्टरेट प्राप्त की है। अब तक उड़िया कविताओं के उनके 12 संकलन, 4 निबन्ध-संग्रह, आदिवासी कविता के अंग्रेज़ी अनुवाद प्रकाशित। हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के अलावा अनेक विदेशी भाषाओं में रचनाएँ अनूदित प्रकाशित। ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादेमी पुरस्कार, सोवियत लैण्ड अवार्ड, सारला पुरस्कार, कुमारन आशन पुरस्कार, राज्य साहित्य अकादेमी पुरस्कार आदि से सम्मानित।
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