“उस जीवन पर क्या गर्व करना जिसमें गिनाने के लिए वर्षों की संख्या के सिवा कुछ न हो। बदलाव में जिंदगी है, ठहराव में नहीं।” - बात बनेचर बात बनेचर, वो किताब है कि जब इसका पहला पन्ना खोलो तो ऐसा लगता है मानों जंगल के प्रवेश द्वार पर खड़े हों और पंछियों की, पशुओं की आवाज़ें अंदर बुला रही हों। एक बार इसकी कोई भी कहानी पढ़ने की देर नहीं है कि ख़ुद कहाँ बैठे हैं, कितनी देर से पढ़ रहे हैं, ये भी याद नहीं रहता। About the Author सुनील कुमार ‘सिंक्रेटिक’ वर्तमान हिन्दी में अपनी विधा के एक मात्र लेखक हैं। सब किस्सा लिखते हैं, ये बन किस्सा। इनकी प्रसिद्धि इंसानी चरित्र के मुताबिक जानवरों को ढूंढकर ऐसी कहानी गढ़ने की है कि जंगल का सामान्य सा किस्सा, कब मनुष्य का जीवन-किस्सा बन जाता है, पता ही नहीं चलता। विजुअल मोड इनकी लेखनी की विशेष शैली है। पढ़ने के साथ कहानी आँखों के सामने घूमने लगती है। इनकी पहली किताब ‘बनकिस्सा’ पाठकों के बीच ‘मॉडर्न पंचतंत्र’ के रूप में विख्यात है। ‘बात बनेचर’ उसी परंपरा की अगली किताब है। अनुक्रमणिका 1. स्वार्थी की पहचान 2. तेंदुआ-छाप 3. बिल का चूहा 4. कूप-कच्छप 5. कानून का राज 6. बैल और कुत्ता 7. विभेद 8. उड़ान 9. दुष्ट की पहचान 10. प्रतिकार 11. राजा कौन 12. बाज का राज 13. मौत की गुफा 14. कान में क्या कहा 15. स्केपगोट 16. चूहे और चमगादड़ 17. डांगर की खोज\n\n
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