Badal Rag

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बादल राग - \n'स्त्रियों का मन समझने के लिए स्त्री ही होनी चाहिए' यह धारणा दामोदर खड़से ने अपने उपन्यास 'बादल राग' में ग़लत सिद्ध कर दी है। स्त्री केन्द्रित अनुभवों को साहित्य-रूप देते समय केवल पारिवारिक, सामाजिक वास्तविकता का ही विश्लेषण काफ़ी नहीं है, बल्कि स्त्री-मन की अन्तर-व्यथा-वेदनाओं की दैहिक अनुभूतियों के परिणामों का भी ध्यान रखना होगा। दामोदर खड़से ने इस उपन्यास के माध्यम से इसे अभिव्यक्त किया है।\nदामोदर खड़से ने इस उपन्यास में सामाजिक रूढ़ियों, नीति-संकल्पनाओं की सुविधाजनक सीमाओं के पार जाकर स्त्री-मुक्ति का स्वावलम्बी मार्ग तलाशने वाली नायिका का संघर्ष और उसकी दृढ़ता का यशस्वी चित्रण किया है। उन्होंने स्त्री मुक्ति के सामाजिक-सांस्कृतिक पहलुओं के साथ शारीरिक व मानसिक आयामों का भी विचार किया है। शिक्षित स्त्री-पुरुषों का साथ आना केवल काम-वासना के लिए है तो वह पाप ही होगा। लेकिन, आत्म-भान जागृत स्त्री-पुरुष आपसी वैचारिक समानता आधारित एक-दूसरे के व्यक्तित्व को आदरपूर्वक स्वीकार करते हैं तो यह स्त्रीत्व का सम्मान ही है। स्त्री-पुरुष समानता की पैरवी, स्त्रीवादी जीवनदृष्टि इस उपन्यास में बख़ूबी अभिव्यक्त हुई है।

दामोदर खड़से - जन्म: 11 नवम्बर, 1948, ग्राम पटना, ज़िला : सरगुजा (छत्तीसगढ़)। शिक्षा: एम.ए., एम.एड., पीएच.डी. (हिन्दी)। कृतियाँ: पिछले तीन दशकों से हिन्दी कहानी, उपन्यास और कविता में सुपरिचित नाम। अब तक पाँच कहानी-संग्रह, दो उपन्यास, तीन कविता-संग्रह, एक यात्रा-रिपोर्ताज़ और ग्यारह पुस्तकों का मराठी अनुवाद प्रकाशित। कहानी-लेख आदि का पाठ्यक्रमों में समावेश अनेक राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों, कवि-सम्मेलनों में सहभाग। कोलम्बिया विश्वविद्यालय (न्यूयार्क) में व्याख्यान और वाशिंग्टन तथा न्यूयार्क में कवि-सम्मेलनों में सहभागिता। विभिन्न चैनलों पर कविता-पाठ। 'इस जंगल में' कहानी दूरदर्शन के लिए चयनित और कविताओं का एक कैसेट—'मैं लौट आया हूँ'। सदस्य: पुणे, मुम्बई विश्वविद्यालयों के बोर्ड ऑफ़ स्टडीज़, भारत सरकार की हिन्दी सलाहकार समितियों, महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी आदि में सदस्य के रूप में कार्य। प्रमुख सम्मान: महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी द्वारा हिन्दी साहित्य में योगदान के लिए 'मुक्तिबोध सम्मान', उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का 'सौहार्द सम्मान', केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय का 'राष्ट्रीय साहित्य पुरस्कार'।

दामोदर खड्से

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