‘हे बुद्ध, मैं तुमको, धम्म को और संघ को शरणागत हूँ . . . बस, यही त्रिरत्न मेरी कुल संपदा है अन्यथा और कुछ भी नहीं है मेरे पास . . .\n\nबौद्ध धर्म के पालन के लिए किसी भी व्यक्ति को तीन बातों पर अमल करना होगा : पहली उसे सभी सिद्धांतों की जानकारी हो। दूसरी सिद्धांतों को व्यवहार में लाने के लिए रूपरेखा सामने हो। तीसरी रूपरेखा को व्यवहार में उतारने के लिए साहस, संकल्प व अनुशासन हो।\n\nयह पुस्तक पहली दो आवश्यकताओं की पूर्ति करती है, जबकि तीसरी आवश्यकता को पूरा करना आप पर निर्भर है यह धम्म की पुकार थी कि धम्मचारी सुभूति के शृंखलाबद्ध प्रवचनों का अनुवाद करने का विचार मन में उठा। इसी का प्रतिफल यह पुस्तक है, जो हर किसी को धम्म पर चलने और बुद्धत्व प्राप्त करने का मार्ग दिखाएगी।
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Rajesh ChandraAdd a review
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