पिय पाठकों से अनुरोध है कि श्रीमद्भगवद्गीता के सम्बन्ध में वह पुरानी या पूर्व-प्रचलित धारणाओं, मिथकों, पूर्वाग्रहों एवं लोक मान्यताओं में फैली आमक बातों को एक तरफ कर इस पुस्तक के माध्यम से उसके वास्तविक आधार को जानें और अपने भावों को संयमित रखते हुए अतीत की जानकरी का विहङ्गम आनन्द उठायें क्योंकि पूर्व में जो हो गया सो हो गया। वहीं पूर्व कसे रचनाकार ऐतिहासिक तथ्यों व घटनाओं को किस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप में संकलित करते थे गीता महाभारत रामायण स्मृतियाँ और बुद्धचरित आदि ग्रन्थ उनके बेहतरीन उदाहरण हैं। अतएव श्रीमद्भगवद्गीता को उसी के मौलिक दृष्टिकोण से समझिये।
Add a review
Login to write a review.
Customer questions & answers