Bhakti Bharati

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भक्ति भारती - \nद्वितीय शताब्दी में आचार्य कुन्दकुन्द देव ने प्राकृत भाषा में भक्तियाँ रचीं। पाँचवीं शताब्दी में आचार्य पूज्यपाद ने संस्कृत भाषा में भक्तियाँ रचीं। वर्तमान इक्कीसवीं सदी में महाव्रती महाकवि आचार्य विभवसागर जी ने हिन्दी भाषा में श्रेष्ठ भक्तियाँ रचीं।\nप्रस्तुत कृति में भक्ति भारती भाषा के महाव्रती महाकवि आचार्य विभवसागर रचित युग प्रधान, सारगर्भित, शास्त्र सन्दर्भित एवं स्वरचित सप्रमाणित, मौलिक भक्ति काव्य, रचनाओं का दुर्लभतम, काव्य कोशालय है।\n\nप्रथम शताब्दी में आचार्य शिवकोटि ने भगवती आराधना ग्रन्थ में समाधिमरण का विशद वर्णन किया।

महाव्रती की महायात्रा - गृहस्थ नाम : पं. अशोक कुमार 'शास्त्री'। जन्म : 23 अक्टूबर, 1976। शिक्षा : संस्कृत शास्त्री प्रथम वर्ष (इंटर)। वैराग्य : 9 अक्टूबर, 1994 को ब्रह्मचर्य व्रत लिया। क्षु. दीक्षा : 28 जनवरी, 1995 मंगलगिरि सागर (म.प्र.)। ऐलक दीक्षा : 23 फ़रवरी, 1996 देवेन्द्रनागर पन्ना (म.प्र.)। मुनि दीक्षा : 14 दिसम्बर, 1998 अति-क्षेत्र बरासौ भिण्ड (म.प्र.)। आचार्य पद : 31 मार्च, 2007 औरंगाबाद (महाराष्ट्र)। दीक्षा गुरु : गणाचार्य 108 श्री विरागसागर जी महाराज। कृतियाँ : सबसे प्रिय रचना - समाधि भक्ति, भक्ति भारती, तत्त्व शास्त्र पुरुषार्य शास्त्र, समाधि शास्त्र, भक्तामर शास्त्र आदि 65 रचनाएँ आपके सृजन की गयी। अलंकरण : महाव्रती, महाकवि आदि शास्त्रकवि, सारस्वत कवि।

श्रमनाचार्य विभवसागर मुनि

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