भक्तिकाव्य ने लम्बी यात्रा तय की और उसमें कबीर, जायसी, सूर, तुलसी, मीरा जैसे सार्थक कवि हैं। मध्यकाल ने इस काव्य की कुछ सीमाएँ निश्चित कर दीं, पर भक्त कवियों ने अपने समय के यथार्थ से मुठभेड़ का प्रयत्न किया । वे परिवेश से असन्तुष्ट-विक्षुब्ध कवि हैं और समय से टकराते हुए, वैकल्पिक मूल्यसंसार का संकेत भी करते हैं। इस प्रकार भक्तिकाव्य में समय की स्थितियाँ समाजशास्त्र के रूप में उपस्थित हैं, जिसे तुलसी ने 'कलिकाल' कहा- मध्यकालीन यथार्थ। कबीर अपने आक्रोश को व्यंग्य के माध्यम से व्यक्त करते हैं पर उच्चतर मूल्यसंसार का स्वप्न भी देखते हैं। भक्तिकाव्य के सामाजिक यथार्थ की पहचान का कार्य सरल नहीं, उसके लिए अन्तःप्रवेश की अपेक्षा होती है। स्वीकृति और निषेध के द्वन्द्व से निर्मित भक्तिकाव्य का संश्लिष्ट स्वर विवेचन में कठिनाई उपस्थित करता है : साकार-निराकार, ज्ञान-भक्ति आदि । पर किसी भी रचना को उसकी समग्रता में देखना-समझना होगा, खण्ड-खण्ड नहीं। कबीर-जायसी जातीय सौमनस्य के सर्वोत्कृष्ट उदाहरण हैं, मध्यकालीन सांस्कृतिक संवाद को उजागर करते हुए। तुलसी ग्रामजीवन के समीपी कवि हैं और सूर में कृषि-चरागाही संस्कृति का आधार है। मीरा विशिष्ट स्वर हैं-मध्यकालीन नारी-क्षोभ को व्यक्त करती हुई। भक्तिकाव्य वैकल्पिक मूल्य-संसार की खोज करता हुआ, उच्चतम धरातल पर पहुँचता है-रामराज्य, वैकुण्ठ, अनहद नाद, प्रेम-लोक, वृन्दावन आदि के माध्यम से और इस दृष्टि से कवियों का समाजदर्शन उल्लेखनीय है। समर्थ रचना में ही यह क्षमता होती है कि वह अपने समय से संवेदन-स्तर पर टकराती हुई, उसे अतिक्रमित भी करती है, और मानवीय धरातल पर 'काव्य-सत्य' की प्रतिष्ठा की आकांक्षा भी उसमें होती है। भक्तिकाव्य ने इसे सम्भव किया और इसलिए वह चुनौती बनकर उपस्थित है तथा नयी पहचान का निमन्त्रण देता है।
प्रेमशंकर - अवध के नैमिषारण्य क्षेत्र (गाँव सहसापुर, ज़िला सीतापुर) में 2 फ़रवरी 1930 में जन्म । संस्कारी माता-पिता । आत्मनिर्भर जीवन । माध्यमिक शिक्षा के अनन्तर गुरुवर ठा. जयदेव सिंह का संरक्षण । उच्चतर शिक्षा काशी विश्वविद्यालय में, जहाँ शिक्षा-साहित्य के संस्कार बने, जिन्हें लखनऊ में 'युगचेतना' का सम्पादन करते हुए, फिर सागर के अध्यापक-जीवन में विकास मिला । आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी के निर्देशन में शोधकार्य : प्रसाद का काव्य । आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की प्ररेणा से भक्तिकाव्य का अध्ययन । बौद्धिक सक्रियता के रूप में पत्र-पत्रिकाओं में लेखन और अपने समय की रचनाशीलता के साथ चल सकने का प्रयत्न । लेखन की कई दिशाएँ : सांस्कृतिक अध्ययन, भक्तिकाव्य, आधुनिक साहित्य से लेकर समकालीन सर्जन तक । भारतीय संस्कृति-साहित्य के आचार्य रूप में योरप के विश्वविद्यालयों में अध्यापन। कई मान-सम्मान और पुरस्कार । प्रकाशन : प्रसाद का काव्य/कामायनी का रचना-संसार/हिन्दी स्वच्छन्दतावादी काव्य/भक्ति चिन्तन की भूमिका/भक्तिकाव्य की भूमिका/रामकाव्य और तुलसी/कृष्णकाव्य और सूर/भक्तिकाव्य की सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना/भक्तिकाव्य का समाजशास्त्र/भक्तिकाव्य का समाजदर्शन/आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी/सियारामशरण गुप्त/सृजन और समीक्षा/नयी कविता की भूमिका। रचना और राजनीति, पहाड़ी पर बच्चा (कविता-संकलन) । इस समय समकालीन कविता पर काम। पता : द्वारा डॉ. श्रीमती शोभाशंकर, ब-16, विश्वविद्यालय परिसर, सागर-470003
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