भारतीय कुम्भ पर्व - \nयूँ तो पूरा भारत अपनी-अपनी तरह से धार्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत का केन्द्र रहा है, जिसमें भारतवासी प्राचीन काल से ही उत्तर से दक्षिण, दक्षिण से उत्तर, पूर्व से पश्चिम और पश्चिम से पूर्व के और धार्मिक व सांस्कृतिक स्थलों की यात्राएँ करते आये हैं। तीर्थ एकता एवं समरसता का सन्देश देते हैं। नदियाँ हमारी संस्कृति की प्राण हैं। सन्त हमारी सनातनी संस्कृति के आधार हैं। प्रयाग कुम्भ उसी संस्कृति के प्राण और आधार का महाकुम्भ है। यह विश्व का अद्भुत और विशाल पर्यटन स्थल हो गया है। उसका ही वर्णन 'भारतीय कुम्भ पर्व' नामक पुस्तक में दिया है।
डॉ. श्यामबालाराय - जन्म: गाजीपुर उत्तर प्रदेश, वर्तमान समय में दिल्ली में स्वतन्त्र लेखिका। एम.ए., पीएच.डी. इलाहाबाद विश्वविद्यालय, पत्रकारिता एवं पर्यटन में डिप्लोमा। हिन्दी एवं अंग्रेज़ी, पत्रकार, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन, कहानीकार, समीक्षक, संस्मरण लेखिका, मौलिक चिन्तक, स्वतन्त्र रचनाकार, काव्य रचनाकार, अनुवादक। पुरस्कार: उत्तर प्रदेश सरकार के हिन्दी संस्थान द्वारा भगवानदास नामित पुरस्कार 2006, कृष्णासाही श्यामनारायण पुरस्कार, इलाहाबाद। सम्मान: साहित्य शिरोमणि, मानद उपाधि (अखिल भारतीय हिन्दी सेवी संस्थान, देहरादून अधिवेशन 2007), भारत साहित्य रत्न मानद उपाधि (अ.भा.हि. सेवी संस्थान इलाहाबाद 2012)। अन्य संस्थाओं द्वारा देश के विभिन्न अंचलों में राष्ट्रभाषा हिन्दी, संस्कृत तथा दर्शनशास्त्र और कहानी लेखिका के रूप में सम्मानित एवं अभिनन्दित। अखिल भारतीय महिला रचनाकार संघ की प्रादेशिक अध्यक्ष। आठ ग्रन्थ प्रकाशित एवं दो अनुवाद।
श्यामबाला रायAdd a review
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