भारतीय पुनर्जागरण के प्रमुख विचारक - \nभारत पर ब्रिटिश विजय से यहाँ एक आमूल परिवर्तन की स्थिति बनी ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत भारत की आर्थिक शोषण की गति बढ़ी और परिणामतः आर्थिक विपन्नता का युग आरम्भ हुआ इन स्थितियों में भारतीय समाज में अन्धविश्वास, रूढ़ियाँ और जाति प्रथा प्रबल बनी, जिनका पहले से बोलबाला था। इतना होने पर भी यह विचारणीय है कि ब्रिटिश शासन तथा पाश्चात्य सम्पर्क के कारण भारतवर्ष में नयी स्थितियाँ उत्पन्न हुई। इन नयी स्थितियों में अंग्रेज़ी शिक्षा प्राप्त भारतीयों ने पाश्चात्य जगत् के ज्ञान-विज्ञान, बुद्धिवाद तथा मानवतावाद का पाठ पढ़ा। इन भारतीयों की तर्क बुद्धि ने भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिए उन्हें मौलिक प्राचीन भारतीय साहित्य का अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया। इन दोनों शक्तियों (पाश्चात्य तथा प्राच्य) के सम्मिलित प्रभाव से उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्रों में ऐसे आन्दोलनों का शुभारम्भ हुआ जिसे भारतीय पुनर्जागरण की संज्ञा दी गयी।\nभारतीय पुनर्जागरण का नेता मध्यमवर्ग था। यह वर्ग आधुनिकता का अग्रदूत था और ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत जन्मीं विभिन्न स्थितियों का अध्ययन करने वाला था। विवेकशील होने के कारण प्रारम्भ से सत्ताविरोधी था। यह वर्ग धार्मिक, सामाजिक आन्दोलन, राष्ट्रीय आन्दोलन तथा संकुचित वातावरण में साम्प्रदायिकता का नेता बना।\nइस पुस्तक में भारतीय पुनर्जागरण के कुछ विचारकों की शीर्षस्थ विचारधाराओं का अध्ययन किया गया है। महात्मा गाँधी के केवल हिन्दू-मुस्लिम एकता और ख़िलाफ़त आन्दोलन सम्बन्धी विचारों को समाहित किया गया है।
श्रीमती डॉ. आभा नवनी - श्रीमती डॉ. आभा नवनी डॉ. हरीसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय सागर (म.प्र.) के इतिहास विभाग में अध्यक्ष पद पर आसीन रहीं। साथ ही विगत 28 वर्षों से आधुनिक भारतीय इतिहास की विभिन्न विधाओं के अनुसन्धान में अनवरत रूप से संलग्न रही है। डॉ. नवनी द्वारा रचित पुस्तकें 'Writings on Nehru some reflections on Indian thoughts and related Essays', 'उत्तराखण्ड में पर्यावरण चेतना और उसमें स्त्रियों की भूमिका' और 'भारतीय पुनर्जागरण के अग्रदूत राजा राममोहन राय' हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने दो दर्जन से अधिक इतिहास विषयों पर अनुसन्धान परक आलेख राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित किया है। डॉ. नीरज जायसवाल - वर्तमान में शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय गाँधवा ज़िला, खण्डवा, मध्य प्रदेश में लेक्चरर पद पर कार्यरत हैं। इन्होंने डॉ. आभा नवनी जी के निर्देशन में 'स्वतन्त्रता के पूर्ववर्ती हिन्दी साहित्यकारों की रचनाओं का राष्ट्रवाद के उत्थान में योगदान' पर अपना शोध कार्य सम्पन्न किया है। इनकी पुस्तकें 'भारतीय पुनर्जागरण के अग्रदूत राजा राममोहन राय' डॉ. आभा नवनी जी के साथ संयुक्त रूप से प्रकाशित हो चुकी है। अभी तक इनके दस से अधिक शोध-पत्र विभिन्न शोध-पत्रिकाओं तथा National Seminar में प्रकाशित हो चुके हैं।
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