प्रस्तुति कृति से पहले भारतीय संविधान से सम्बन्धित अधिकांश लेखन संविधान के नीरस प्रावधानों में उलझ कर रह जाता था। यह तात्कालिकता और वर्णनात्मकता से आक्रान्त एक ऐसा लेखन था जिसमें एक दस्तावेज़ के रूप में संविधान की ऐतिहासिक पूर्व-पीठिका, संविधान सभा की उग्र बहसों के आग्रह-दुराग्रह और चिन्ताएँ अनुपस्थित थीं। इस तरह ग्रेनविल ऑस्टिन की इस रचना ने भारत में संवैधानिक अध्ययन की धारा को एक नया परिप्रेक्ष्य प्रदान किया।\nभारतीय संविधान की निर्माण-प्रक्रिया, उसके अवधारणात्मक आधार तथा उसकी लोकतांत्रिक परिणति से लेकर केन्द्र सरकार के स्वरूप, नागरिक अधिकारों, संघ और राज्य के आपसी सम्बंधों, न्यायपालिका की भूमिका तथा भाषा के असाध्य विवाद जैसे विभिन्न मुद्दों पर विचार करने योग्य है। इस पुस्तक को अवश्य पढ़ना चाहिए, क्योंकि इसमें हमारे देश के संविधान के महत्वपूर्ण पहलू और मुद्दों का विस्तार से विवेचन किया गया है। यह पुस्तक भारतीय गणराज्य के निर्माण में भूमिका निभाने वाले महापुरुषों के सोच और प्रयास को समझने में मदद करेगी और आपको एक सशक्त नागरिक के रूप में जागरूक करेगी।
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