भोर उसके हिस्से की – तीन स्त्रियों की यात्रा- एक नया आसमान छूने को… वर्जनाओं, मर्यादाओं को पहचानने को … उनसे जूझने को भोर उसके हिस्से की -जब तक जामवंत ने हनुमान को अहसास नहीं दिलाया था कि तुम समुद्र लाँघ सकते हो, तब तक उनका रावण की नगरी लंका तक जाना असम्भव था। इसी तरह कई बार हमारे मन के अवचेतन के जड़ों, बन्धनों, जंजीरों को तोड़ने के लिए एक बल की ज़रूरत होती है, जो होता तो हमारे अन्दर ही है पर उसे किसी बाहरी जामवंत की प्रेरणा चाहिए होती है। तीस से छत्तीस वर्ष के वय की तीन नौकरी पेशा स्त्रियाँ हैं, जो अपना रूटीन जीवन जी रही हैं। वे काम के सिलसिले में एक दूसरे से मिलती हैं और गहरी दोस्त बन जाती हैं। व्यवसायों की पुरुष प्रधान दुनिया में वे पहले से ही खुद को अकेली महसूस करती रही थीं। अपने आस-पास के संसार, पुरुषों और समाज के अदृश्य बन्धनों से उनमें एक क्षोभ है। उनमें से ही एक स्त्री द्वारा, नितांत मजाक में विदेश का ओनली लेडीज ट्रिप प्रस्तावित किया जाता है। बात की बात में वे उस पर सहमत हो जाती हैं। इस यात्रा पर वे पहली बार स्वयं से मिलती हैं। अपनी क्षमताओं, सीमाओं और वर्जनाओं से उनकी मुलाकात होती है। यह यात्रा मिलाती है उन्हें उस स्वतंत्र महिला से जो अपने डर, शर्म, लाज, लिहाज, परिधान, उपेक्षा, परिहास से इतनी आगे निकल जाना चाहती है कि उसे यह सब दिखना ही बंद हो जाए।
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