प्रत्येक समय, समाज और स्थान की अपनी गति होती है। अल्प काल की अवधि में देखने पर यह स्थिर और जड़ प्रतीत होता है परन्तु उसकी आन्तरिक हलचलें उसे निरन्तर गतिमान बनाये रखती हैं। जिसका प्रतिबिम्बन दीर्घकालिक स्थितियों व परिस्थितियों में परिलक्षित होता है। इन्हीं हलचलों की दिशा और दशा को देखने और समझने का प्रयास बैल की आँख उपन्यास के माध्यम से संतोष दीक्षित ने किया है।
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