बूँद\n\nसमकालीन हिन्दी कहानी की प्रतिष्ठित कथाकार मंजुल भगत की कहानियों के बारे में यह ठीक ही कहा गया है कि उनकी कहानियाँ धीमे से दस्तक देकर पाठक- मन में प्रवेश करती हैं और दबे-पाँव चुपचाप भीतर किसी कोने में दुबककर बैठ जाती हैं । और फिर वहीं बसेरा करके रच-बस जाती हैं। जब वे ग़ायब होती हैं तो भी परछाई की तरह आसपास मँडराती रहती हैं — सूक्ष्म, सरल बनावट- ट-बुनावट और बुनियादी सरोकारों के साथ ।\n\nमंजुल भगत के इस नवीनतम कहानी-संग्रह बूँद में उनकी नयी कहानियाँ संगृहीत हैं। चरित्रों का तटस्थ विश्लेषण, बिखरते मानव-मूल्यों के प्रति गम्भीर चिन्ता, जीवन और आसपास की व्यापक पृष्ठभूमि तथा अनुभवों एवं संवेदनाओं की महीन अभिव्यक्ति इस संग्रह की कहानियों को पूरी सार्थकता के साथ अद्वितीय और विश्वसनीय बनाती हैं । ये कहानियाँ नारी के अभावों और संघर्षों से उपजी विद्रूपताओं, अर्थहीन रूढ़ियों और विसंगतियों की पड़ताल तो करती ही हैं, संस्कृति, संस्कार, परिवेश और चरित्रों का समग्र भीतरी संसार भी अपने अन्दर समेटे हुए हैं ।
मंजुल भगत जन्म : 22 जून, 1936 1 जन्मस्थान : मेरठ | शिक्षा : बी. ए., दिल्ली विश्वविद्यालय में फ़र्स्ट क्लास फ़र्स्ट । प्रमुख कहानी संग्रह : गुलमोहर के गुच्छे (1974), टूटा हुआ इन्द्रधनुष (1976), क्या छूट गया (1976), आत्महत्या के पहले (1979), कितना छोटा सफ़र (1979), बावन पत्ते और एक जोकर (1982), सफ़ेद कौआ (1986), दूत (1992), चर्चित कहानियाँ (1994), बूँद (1998), अन्तिम बयान (2001)। उपन्यास : टूटा हुआ इन्द्रधनुष (1976), लेडीज क्लब (1976), अनारो (1977), बेगाने घर में (1978), ख़ातुल (1983), तिरछी बौछार (1984), गंजी (1995)।
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