चार दरवेश - \nवरिष्ठ कथाकार हृदयेश की रचनाशीलता में अपने समय के ज्वलन्त प्रश्न गूँजते रहते हैं। 'चार दरवेश' हृदयेश का नया उपन्यास है। इस उपन्यास की कथावस्तु चार बुजुर्गों के 'सन्ध्या समय' का विश्लेषण करते हुए विकसित होती है। रामप्रसाद, शिवशंकर, दिलीपचन्द और चिन्ताहरण के पास अपने-अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभव है। युवावस्था की विविध स्मृतियाँ हैं जो किसी न किसी रूप में मानवीय मूल्यों पर चलने की ज़िद का परिणाम हैं। इन सबके साथ ये चारों व्यक्ति पूँजीवादी, लोलुप और बर्बर परिवेश का सामना कर रहे हैं। हरेक व्यक्ति की प्रकृति भिन्न है, संघर्ष की शक्ल जुदा, जिजीविषा के स्रोत अलग—लेकिन नियति एक है। त्रासद नियति।\nएक प्रसंग में हृदयेश लिखते हैं, 'आप यो समझिए, कि जैसे दो गुंडे अपने-अपने उद्देश्य लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक हो जाते हैं, वैसे समय और बाज़ार एक हो गये हैं। इसलिए आज का समय क्रूर और हिंसक तो होगा ही होगा और माहौल को वैसा बनायेगा।'—इस विचारवृत्त के भीतर 'चार दरवेश' विस्तार पाता है। वस्तुतः यह उपन्यास एक दारुण यथार्थ से हमारा साक्षात्कार कराता है। उस यथार्थ से जिससे हम सब भी घिरे हुए हैं। —सुशील सिद्धार्थ
हृदयेश - जन्म: 2 जुलाई, 1930, शाहजहाँपुर (उ.प्र.)। शिक्षा: इंटरमीडिएट, साहित्यरत्न। अब तक 10 उपन्यास जिनमें प्रमुख हैं—हत्या, सफ़ेद घोड़ा काला सवार, साँड़, दंडनायक, किस्सस हवेली, चार दरवेश। 20 कहानी-संग्रह जिनमें प्रमुख हैं—अमरकथा, नागरिक, सम्मान, सन् उन्नीस सौ बीस, उसी जंगल समय में, शिकार। आत्मकथा—'जोख़िम' तथा दो अनुवाद की पुस्तकें प्रकाशित। समग्र कहानियाँ तीन खण्डों में। 'मनु' कहानी दिल्ली विश्वविद्यालय तथा इग्नू के पाठ्यक्रम में सम्मिलित। 'सन्दर्श' द्वारा प्रकाशित विशेषांक बहुचर्चित। दूरदर्शन द्वारा व्यक्तित्व और कृतित्व पर वृत्तचित्र का निर्माण। सम्मान: 'साहित्य भूषण' तथा 'पहल' सम्मान।
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