कुंदन महानगर में रहनेवाली पैंतीस साल की सुखी महिला, एक चीज, जिससे आज तक निकल नहीं पाई—डर। ऐसा कुछ नहीं, जो उसके आने के साथ जोड़ दिया जाए, सिवाय इसके कि उसकी रोने की आवाज दादी को तीर की तरह चुभी थी। पापा के दफ्तर के लोगों ने बेटी के होने के बारे में जाने बिना ही टोक दिया था, विजय, तेरा चेहरा उतरा हुआ क्यों है? इन सबसे बेखबर माँ के प्यार के साथ वह पल रही थी। जिंदगी तब बिल्कुल बदल गई, जब उसके जीवन की उस गलती के लिए, जो उसने की ही नहीं थी, माँ ने बिना सुने ही सजा सुना दी। जहाँ हर लड़की को शादी के बाद मायका खोने का दुःख होता, वह चाहने लगी, शादी जल्दी हो तो अच्छा है, उसे अपनी पहचान बनाने का मौका दोबारा मिलेगा। यहाँ तक के सफर में जाने कितने मौके आए, जब उसे लगा, उसका जीना बेवजह है, पर आत्महत्या! वह भी बुजदिल लोग कहाँ कर पाते हैं? बस एक ही काम वह पूरी शिद्दत से करते हैं— समझौता। ऐसे ही समझौतों और उतार-चढ़ाव की कहानी है—चारु रत्न की कहानी। शादी के सालों बाद कैसे वह अपने छोटे से शौक के सपने देखती है और अपने डर को जीतने की एक-एक सीढ़ी चढ़ती है। जीवन के विविध रंगों को उकेरता, मानवीय संबंधों को रेखांकित करता पठनीय उपन्यास।
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Swati GautamAdd a review
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