लोग असली जीवन भूल गए हैं, वे डुप्लीकेटी से ही काम चलाते हैं। जैसे एक इनसान गलती से अपने घर की चाभी निगल गया, लेकिन एक महीने के बाद डॉक्टर के पास गया और कहा, ‘मैं अपने घर की चाभी निगल गया हूँ, उसे निकलवाना है।’ डॉक्टर ने पूछा, ‘आपने चाभी कब निगली थी?’ उसने जवाब दिया, ‘एक महीना पहले।’ उस इनसान का यह जवाब सुनकर डॉक्टर हैरान रह गया और पूछा, ‘फिर आप अभी चाभी निकलवाने के लिए क्यों आए हैं? इतने दिन कैसे रहे?’ उसने जवाब दिया, ‘अब तक तो मैं अपनी डुप्लीकेट (नकली) चाभी से काम चला रहा था, लेकिन आज वह भी खो गई है, इसलिए तो ऑरिजनल (असली) चाभी निकलवाने के लिए आपके पास आया हूँ। आज ऑरिजनल चाभी की जरूरत पड़ी है।’ यदि इस चुटकुले को समझा जाए तो इसमें गहरी समझ छिपी है। चुटकुलेवाले इनसान पर तो हम आसानी से हँस लेते हैं, परंतु हम अपने जीवन में भी ऐसी गलती करते हैं। असली आनंद अंदर है, लेकिन लोग डुप्लीकेट आनंद से काम चलाते रहते हैं। जब वह आनंद भी खो जाता है तब वे सोचते हैं कि ‘चलो अभी सत्संग में चलते हैं, वहाँ कुछ तो मिलेगा।’ ऑरिजनल चाभी पाने के लिए आपको पहले चाहिए सोचने की तरकीब। तरकीब है थोड़ा सोचें, अच्छा सोचें। आइए, इस तरकीब का उपयोग सीखने के लिए कुछ करें। सोचने की यह तरकीब आपको इस पुस्तक द्वारा प्राप्त होगी।.
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