राकेश तिवारी की कहानियों में क़िस्सागोई बहुत रोचक है। उस क़िस्सागोई के साथ उनकी भाषा में खिलंदड़ापन भी है। उनकी कहानियों में स्त्रियों का जो चरित्र आया है उसमें स्त्रियों का आक्रोश सामने आया है। स्त्रियों का कड़ा संघर्ष है। उनकी तेजस्विता दिखाई देती है। इसके साथ हास्यास्पद स्थितियाँ काफ़ी हैं। सेंस ऑफ ह्यूमर बहुत है। गम्भीरता के बीच में वह ह्यूमर गम्भीरता को और भी तीव्र करता है। भाषा पर लेखक का अधिकार है। इतना गठा हुआ गद्य कम पढ़ने को मिलता है।- प्रो. नामवर सिंह (सबद निरन्तर, दूरदर्शन)/राकेश तिवारी समसामयिक दौर की सामाजिक-ऐतिहासिक उच्छृखलता के साक्षी रचनाकार हैं। नव उदारवादी आर्थिक दौर में सामन्तवादी क्रूरता की यातना उनकी कहानी में चित्रित की गयी है। इस दौर का मनमानापन ऊपर से देखने में ऊटपटाँग और हास्यास्पद लगता है। दारुणता यह है कि यह हास्यास्पदता तो सिर्फ़ रूप है, इसकी अन्तर्वस्तु अभूतपूर्व अमानवीयता है। पूँजीवाद की हास्यास्पदता 'चटक-मटक' प्रकाश-कोलाहल से भरा उसका मनोरंजक रूप कितना हिंसक और अपराधी है, इसे राकेश तिवारी की कहानियाँ प्रकट करती हैं।- डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी (कथादेश) /समकालीन हिन्दी कहानी के परिदृश्य में राकेश तिवारी की उपस्थिति एक ऐसे कहानीकार के रूप में है जिनकी कहानियाँ रूपकों और प्रतीकों के साथ फ़न्तासी के समन्वित प्रयोग से समकालीन जीवन की विडम्बनाओं को बेपर्दा करती हैं। यह कथा-संसार विरूपित समय की विभीषिकाओं और सम्बन्धों में आयी अर्थहीनता के साथ-साथ उपभोक्तावादी आपदाओं को भी दिखाता है। ...उनकी कहानियों का सधा हुआ शिल्प और भाषा के लाघव में प्रतीकात्मक विन्यास का स्तर इतना अर्थगर्भित है कि सहसा विश्वास नहीं होता कि हम कहानी पढ़ रहे हैं या किसी भयानक स्वप्न से गुज़र रहे हैं।- ज्योतिष जोशी (नया ज्ञानोदय)/राकेश तिवारी कहानी विधा को समय के दस्तावेज़ीकरण का माध्यम भी मानते हैं और माध्यम की विशिष्टता/अनोखेपन के प्रति पूरी तरह सजग भी हैं। ...उनकी कहानियाँ अपने कहानी होने की अनिवार्यता का बोध कराती हैं और पढ़ते हुए लगता है कि उनके कथ्य को उनके पूरे रचाव से छुड़ाकर कहना कितना मुश्किल होगा। विधा/माध्यम के अनोखेपन को इस तरह सुरक्षित रखते हुए ही ये कहानियाँ अपने समय के संकटों, रुझानों, अन्तर्विरोधों को पकड़ने का जतन करती हैं और इस मामले में भी कहानीकार की अचूक क्षमता का परिचय देती हैं।- संजीव कुमार (हंस)*यहाँ दी गयी आलोचकों की राय इस संग्रह के बारे में नहीं है।
राकेश तिवारी उत्तराखंड के गरमपानी (नैनीताल) में जन्म। कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल से शिक्षा । उपन्यास 'फसक' के अलावा दो कहानी संग्रह 'उसने भी देखा' और 'मुकुटधारी चूहा,' एक बाल उपन्यास 'तोता उड़' और पत्रकारिता पर एक पुस्तक 'पत्रकारिता की खुरदरी जमीन' प्रकाशित। एक दौर में सारिका, धर्मयुग, रविवार, साप्ताहिक हिन्दुस्तान से लेकर हिन्दी की लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कहानियों के प्रकाशन के साथ चर्चित । बीच की लम्बी खामोशी के बाद पिछले कई वर्षों से सक्रिय कथा-लेखन । कुछेक शुरुआती कहानियों का पंजाबी, तेलुगु आदि भारतीय भाषाओं में अनुवाद। एक कहानी (तीसरा रास्ता ) पर फ़िल्म बनी है और एक कहानी (दरोग्गा जी से ना कव्यो) के नाट्य रूपान्तरण के बाद दिल्ली सहित कई शहरों में नाट्य प्रस्तुतियाँ | व्यंग्य और बाल साहित्य लेखन भी। पत्रकार के रूप में अख़बारों और पत्रिकाओं के लिए राजनीति, खेल, साहित्य, कला, फ़िल्म, पर्यावरण, जनान्दोलन और अन्य समसामयिक विषयों पर लेखन। इंडियन एक्सप्रेस समूह के राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक 'जनसत्ता' में उप-सम्पादक, वरिष्ठ उपसम्पादक, वरिष्ठ संवाददाता, प्रमुख संवाददाता और विशेष संवाददाता के रूप में पत्रकारिता की लम्बी पारी। इस दौरान राजनीतिक और अन्य क्षेत्रों के अलावा साहित्यिक-सांस्कृतिक रिपोर्टिंग में एक अलग पहचान बनाई। शुरुआती दौर में रंगकर्म और पटकथा लेखन से थोड़ा-बहुत नाता । छिटपुट तौर पर पत्रकारिता का अध्यापन और अनुवाद कार्य। दिल्ली में निवास । सम्पर्क : rtiwari.express@gmail.com फोन : 09811807279
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