चोर सिपाही - \nवर्तमान युवा पीढ़ी लेखकों के बारे में धारणा है कि इसके कथा लेखन में 'कहानी' को ढूँढ़ना पड़ता है... और यह कि इसमें 'आत्मा' नहीं है... ख़ाली भाषा का ज़ोर है और स्टाइल का आडम्बर है। मैं इससे पूरी तरह सहमत हूँ... क्योंकि मैंने इस पीढ़ी के प्रमुख हस्ताक्षर मो. आरिफ़ की 'फूलों का बाड़ा' आद्योपान्त पढ़ी है। आरिफ़ की कहानियाँ अपनी सादगी, सरलता और 'शार्पनेस' से हतप्रभ कर देती हैं। इसके विषय और इनका गद्य... दोनों ही विशिष्ट हैं। इसके यहाँ ‘पठनीयता' के साथ जो 'गम्भीरता' है वह विरल है।—नामवर सिंह
मो. आरिफ़ - जन्म: 7 मई, 1961। शिक्षा: एम.ए. (आधुनिक इतिहास), इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद। प्रकाशन: उपयात्रा (उपन्यास) बहुचर्चित। 'फूलों का बाड़ा', 'फिर कभी' (कहानी-संग्रह)। प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। साहित्यिक पत्रिका 'तद्भव' अंक 28 में प्रकाशित कहानी 'चूक' बहुचर्चित-बहुप्रशंसित। अंग्रेज़ी में भी लेखन कार्य।
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