दर्दपुर - मज़हबी उन्माद और आतंक ने कश्मीर की संस्कृति और समाज का भयावह विखण्डन किया है। किसी ज़माने में कश्मीरी हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच बहुत ही आत्मीय सम्बन्ध रहे। उन सम्बन्धों की अपनी जटिलता भी थी और संवेदनशीलता भी। परन्तु कश्मीर में आये आतंक और विघटन के नये दौर ने उनके सामंजस्य को समाप्त कर दिया; फिर भी वे उन संवेदनों को समाप्त नहीं कर सके जो मनुष्य को मनुष्य बनाते हैं। इन्हीं स्थितियों और ऊहापोह में लिखा गया सुपरिचित लेखिका क्षमा कौल का उपन्यास 'दर्दपुर' अनुभव सम्पन्न और मार्मिक बन गया है। उपन्यास की नायिका सुधा के अनुभव संसार को केन्द्र में रखते हुए लेखिका ने उसके द्वारा धर्म के आधार पर भोगे हुए उत्पीड़न और संवेदना के उस सत्य का उद्घाटन किया है, जो पाठक की सोच को नयी दिशा देता है।
क्षमा कौल - जन्म: 17 जुलाई, 1956, श्रीनगर कश्मीर। शिक्षा: कश्मीर विश्वविद्यालय एम.फिल. तथा पटना विश्वविद्यालय से पीएच.डी.। कृतियाँ : 'समय के बाद' (डायरी), 'बादलों में आग' (कविता संग्रह) 'आतंकवाद और भारत', 'निक्की तवी पर रिहर्सल' (उपन्यास), 'No earth under our feet' (अंग्रेज़ी में अनूदित कविता संग्रह)। कुछेक रचनाएँ ओड़िया, बांग्ला, तेलुगु एवं अंग्रेज़ी में अनूदित। हिन्दी की लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्रिका में रचनाएँ प्रकाशित। धार्मिक आतंकवाद और अलगावाद के चलते मातृभूमि कश्मीर से 1990 से निर्वासित।
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