देर कर देता हूँ मैं -\n\nआदत सी बना ली है तुमने तो 'मुनीर' अपनी \n\nजिस शहर में भी रहना उकताए हुए रहना\n\nजदीदीयत के ज़माने में ‘मुनीर' का यह शे'र बहुत लोकप्रिय हुआ। कारण था ऊब, अहं, खिन्नता, निष्फलता, सन्त्रास और संशयपसन्दी की सर्वप्रियता और काव्य में उसका प्रकाशन- प्रचलन । इसी के चलते 'मुनीर' को भी तन्हाई, कुण्ठा और महानगरीय अभिशप्त अकेलेपन का शाइर समझ लिया गया । लेकिन ‘मुनीर' ही की तरह 'मुनीर' का अकेलापन भी अलग था। यह अकेलापन अद्वितीय होने की बजाय दूसरों के अकेलेपन को सम्मान और उन्हें अकेले होने रहने की स्वतन्त्रता देने की इच्छा का फल था, उनसे बेज़ारी के सबब नहीं। अकेलेपन का यह अन्दाज़ नया था तो 'मुनीर' को अजनबी समझा गया। लेकिन बहुत जल्द यह खुल गया कि यह 'अजनबी' 'स्ट्रेंजर' नहीं बल्कि 'इक इक बार सभी संगबीती' की जानी-पहचानी स्थितियों का शाइर है।\n\n'मुनीर' हिज्र (वियोग) और हिज्रत (प्रवास) की ऐसी सन्धि-रेखा पर खड़े हैं जो रहस्यात्मक ढंग से कभी आदम की जन्नत से तो कभी मुनीर के होशियारपुर (भारत) से पाकिस्तान की हिज्रत हो जाती है। सूफ़ियों की शब्दावली में विसाल मौत का दूसरा नाम है और हिज्र जीवन या संसार वास का। लेकिन बक़ौल अहमद नदीम क़ासमी ‘मुनीर' का तसव्वुफ़ मीर दर्द और असग़र गौण्डवी से बिल्कुल अलग है। दूसरे शब्दों में यह परम्परागत सूफ़ीवाद से भी भिन्न है। शायद यही सबब है कि उन्हें किसी भी तरह के वाद या नज़रिये से नहीं नापा-परखा जा सकता।\n\n'मुनीर' की शाइरी में बनावट और बुनावट नहीं, सीधे-सीधे अहसास को अल्फ़ाज़ और ज़ज़्बे को ज़बान देने का अमल । उनकी शाइरी का ग्राफ़ बाहर से अन्दर और अन्दर से अन्दर की तरफ़ । एक ऐसी तलाश जो परेशान भी करती है और प्राप्य पर हैरान भी जो हर सच्चे और अच्छे शाइर का मुक़द्दर है।
मुनीर नियाज़ी पाकिस्तान के मशहूर उर्दू-पंजाबी कवि और शायर । जन्म : 19 अप्रैल 1928, ब्रिटिश भारत के होशियारपुर (पंजाब प्रान्त) में। आरम्भिक शिक्षा खानपुर में । विभाजन के बाद साहिवाल में बस गए और वहीं से मैट्रिक की परीक्षा पास की। दयाल सिंह कॉलेज, लाहौर से बी. ए. की डिग्री । मुनीर नियाज़ी ने 1949 में साप्ताहिक पत्रिका 'सात रंग' आरम्भ किया। उन्होंने अखबारों, पत्रिकाओं और रेडियो के लिए लगातार लिखा और 'अल-मिसल' नाम से एक प्रकाशन-संस्था भी शुरू की। पाकिस्तान में फिल्मी गीतकार के रूप में उन्हें पर्याप्त प्रसिद्धि मिली। उनकी बहुत-सी कविताएँ और ग़ज़लें पाकिस्तानी फिल्मों में गानों के रूप में लिए गये। 'उस बेवफा का शहर है और हम हैं दोस्तों' (शहीद, 1962), 'जिसने मेरे दिल को दर्द दिया' (ससुराल, 1962), 'कैसे कैसे लोग हमारे जी को जलाने आ जाते हैं' (तेरे शहर में, 1965), 'जिन्दा रहें तो क्या है जो मर जाएँ हम तो क्या ' ( खरीदार, 1976) जैसे गाने पाकिस्तान में बहुत लोकप्रिय हुए। मृत्युपर्यन्त वे पाकिस्तान टीवी (लाहौर) से जुड़े रहे। मुनीर नियाज़ी के 11 उर्दू और 4 पंजाबी संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। उर्दू में प्रकाशित उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं- 'तेज हवा और ठंडा फूल', 'पहली बात ही आख़िरी थी', 'जंगल में धनक', 'दुश्मनों के दरमियान शाम', 'एक दुआ जो मैं भूल गया था' और 'माहे मुनीर'। पंजाबी में प्रकाशित उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं 'सफर दी रात', 'चार चुप चीजाँ' और 'रस्ता दसन वले तेरे' । सम्मान : पाकिस्तान के राष्ट्रपति द्वारा 'प्राइड ऑफ परफॉर्मेंस' (1992) और सितारा-ए-इम्तियाज (2005) निधन : 26 दिसम्बर 2006, लाहौर ।
मुनीर नियाज़ीAdd a review
Login to write a review.
Customer questions & answers