Dhai Aakhar Prem Ke

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ढाई आखर प्रेम के - \nभावभीनी चित्रात्मक, साथ ही परिनिष्ठित शैली में गद्य लिखने की पुष्पा भारती की क्षमता अद्वितीय है। उनकी लिखी पुस्तकें आद्योपान्त पढ़कर जो अनुभूति होती है, वह हृदय से बधाई देने को बाध्य करती है।—हरिवंश राय बच्चन\nमैं मन्त्रमुग्ध-सा पुष्पा भारती की लेखनीय की ज्योतिर्मयता पर अभिभूत हो उठा हूँ।—शिवमंगल सिंह 'सुमन'\nकथाएँ पढ़कर मन हराभरा हो जाता है। कई बार आँखें छलक आती हैं। लेखिका के प्राण बहुत तरल हैं, वही तरलता पाठक के प्राणों को भी छलका देती है। मैं तो इसे प्रभु का वरदान ही मानता हूँ।—भारतभूषण अग्रवाल\nसहज सरल भाषा में जो चित्र उकेरे हैं वे मन और मस्तिष्क दोनों पर सहज ही अंकित हो जाते हैं। सारे के सारे लेख लीक से हटकर हैं। उनमें कहानी का रस भी है और कहीं-कहीं कविता की चिरमयता भी—जो अन्तर में गहरे अंकित हो जाती है, और कथाओं में वर्णित सभी पात्रों के अन्तर की धड़कनें भी सुनायी देने लगती हैं।—विष्णु प्रभाकर\nपुष्पा जी की भाषा में एक ऐसी रवानगी है कि ठोस से ठोस विषय भी पिघल कर दरिया-सा आँखों के आगे लहराने लगता है। और शैली में तो काव्यात्मकता इतनी अधिक है कि ऐसा अहसास होता है जैसे हम किसी रेशमी नज़्म को सुन रहे हों।—प्रकाश द्विवेदी

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