Dhuan Aur Cheekhein

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धुआँ और चीखें - \nहिन्दी के चर्चित कथाकार दामोदर दत्त दीक्षित का पाठक के मन मस्तिष्क पर ज़बरदस्त प्रभाव डालनेवाला उपन्यास है 'धुआँ और चीखें'। इसमें यों तो कथा-भूमि के रूप में पाकिस्तान के जन्म से लेकर बांग्लादेश युद्ध और युद्धबन्दियों की वापसी तक की कालावधि का वर्णन है, पर दरअसल इस कृति में उन सभी सत्तालोलुप शासकों और अफ़सरशाहों के क्रूर एवं अधम हथकण्डों, शतरंजी चालों तथा सामन्तवाद को खाद-पानी देती व्यवस्था के धूमावृत परिदृश्य को रचनेवालों का बख़ूबी अंकन है। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष फ़ौजी हुकूमत की विडम्बनापूर्ण स्थितियों में आम जनता, नेताओं, बुद्धिजीवियों, पत्रकारों के संघर्ष का जैसा मर्मस्पर्शी चित्रण इस उपन्यास में हुआ है। वह स्वाधीनता की कामना और मानव अधिकारों को बल पहुँचाता है।\nकदाचित् अपने विषय के हिन्दी के इस पहले उपन्यास में कथाकार ने इस्लामी संस्कारों, मान्यताओं, स्थानीय परम्पराओं, क़बीलाई संस्कृति और ऐतिहासिक पृष्ठभूमियों की प्रामाणिक जानकारी देने का प्रयास किया है। कहावतों के सफल प्रयोग और मुहावरेदार भाषा से कथानक का परिवेश जीवन्त हो उठा है।\nयद्यपि उपन्यास का मूल स्वर राजनीतिक है, पर वास्तव में पीड़ित मानवता के प्रति गहरी करुणा इसका कथ्य है। जनजीवन के हर्ष-विषाद, संघर्ष भीरुता, अग्रगामिता-प्रतिगामिता, संस्कृति अपसंस्कृति आदि की झलकियों से एक परिवेश की समूची एवं विश्वसनीय तस्वीर उभरती है जो उपन्यास 'धुआँ और चीखें' को विशिष्ट कालखण्ड की प्रतिनिधि कृति बना देती है।

दामोदर दत्त दीक्षित - जन्म: 25 दिसम्बर, 1949 (अतरौली, लखनऊ)। शिक्षा: लखनऊ विश्वविद्यालय से एम.ए. (प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्त्व), पीएच.डी. तथा पालि एवं जर्मन भाषाओं में दक्षता। प्रकाशित कृतियाँ: प्राचीन श्रीलंका का इतिहास, एग्रीकल्चर, इरिगेशन ऐण्ड हार्टीकल्चर इन ऐन्शिएण्ट श्रीलंका; दरवाज़ेवाला खेत, हुद्देदार, अलगी-अलगा (कहानी-संग्रह); आत्मबोध, सबको धन्यवाद, चन्द बेहूदी हरकतें, प्रतिनिधि व्यंग्य ऑपरेशन महुआ (व्यंग्य-संग्रह); विकटवन के विचित्र क़िस्से (लघुकथा संग्रह); जैसे उनके दिन बहुरे (लोककथा-संग्रह); हम न भूलें तुम्हें (व्यक्तिचित्र-संग्रह); मटियानी: मेरी नज़र में, अपने पत्रों में (संस्मरण-पत्र)। मेनका गाँधी की पुस्तक हेड्स ऐण्ड टेल्स का अनुवाद बेज़बानों की कहानी। 'जैसे उनके दिन बहुरे' लोककथा-संग्रह के लिए उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान से पुरस्कृत-सम्मानित।

दामोदर दत्त दीक्षित

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