दिन बनने के क्रम में - अरुणाभ सौरभ की कविताएँ समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार तथा राजनीतिक पाखण्ड से उपजे क्रोध तथा विक्षोभ को बयान करनेवाली कविताएँ हैं। इनकी कविताओं में भूमण्डलीकरण तथा उपभोक्तावादी अपसंस्कृति की चपेट में आये समाज की पीड़ा तथा सामान्य जन की कराह स्पष्ट झलकती है। कवि अपनी आंचलिकता की आँच में तपे शब्दों के माध्यम से हमें लोकल से ग्लोबल तक का सफ़र करा देता है। अरुणाभ सौरभ की कविताएँ वर्तमान परिस्थितियों की कटुता तथा विद्रूपता को ही सामने नहीं लातीं अपितु मानवीय जिजीविषा, संघर्षशीलता तथा आस्था का अलख जगाती हुई प्रतीत होती हैं। अरुणाभ हमारे समय को आश्वस्त करते ऐसे कवि हैं जिन्हें पाठक अपना स्नेह देंगे।
अरुणाभ सौरभ - जन्म: 9 फ़रवरी, 1985, चैनपुर, सहरसा (बिहार)। शिक्षा: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए., जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नयी दिल्ली से बी. एड.। प्रकाशन: हिन्दी की लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रमुखता से कविताएँ प्रकाशित। समीक्षाएँ और आलेख भी। कई संकलनों में कविताएँ शामिल। हिन्दी के साथ-साथ मातृभाषा मैथिली में भी समान गति से लेखन। अनुवाद: मैथिली कवि तारानन्द वियोगी, रामलोचन ठाकुर की कविताओं का हिन्दी में अनुवाद प्रकाशित। 'युवा संवाद' (मासिक) दिल्ली के कविता केन्द्रित अंक 'शोषण के विरुद्ध' का अतिथि सम्पादन। मैथिली पत्रिका नवतुरिया का भी सम्पादन। पुरस्कार एवं सम्मान: मैथिली कविता संग्रह 'एतबे टा नहि' पर साहित्य अकादमी का युवा पुरस्कार एवं डॉ. महेश्वरी सिंह महेश ग्रन्थ पुरस्कार।
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