दो मुर्दों के लिए गुलदस्ता -\n\nउपभोक्ता समाज में जीने की एक ही शर्त है- अपनी किसी योग्यता को बाज़ार में बेच पाना। छोटे बाज़ार में छोटी क़ीमत, बड़े बाजार में ऊँची क़ीमत। ऊँची क़ीमत से ही सरप्लस, अधिशेष बनेगा और धन का संचय हो सकेगा। इससे सुख और ऊँची जीवन शैली तो प्राप्त हो जाती है, लेकिन बाज़ार अपनी पूरी क़ीमत वसूलता है।\n\nसुरक्षा और समृद्धि का सपना सँजोये शिक्षित-सुन्दर नील और अल्प- शिक्षित भोला अवसर और समृद्धि के महानगर मुम्बई पहुँचते हैं। भोला को अंडरवर्ल्ड पनाह देता है तो नील मिसेज़ दस्तूर का शोध-सहायक बनता है। अंडरवर्ल्ड भोला पर विश्वास बढ़ाता और भोला तरक्की करता जाता है। दो पैसे भी जोड़ता है। उधर सजीला, शालीन, ज़हीन नील असन्तुष्ट अधेड़ धनाढ्य महिलाओं के लिए पुरुष वेश्या (जिगोलो) बन जाता है। उसका सितारा ऊँचा चढ़ता जाता है। सोमपुरिया सेठ की बेटी पारुल नील से प्रेम कर गर्भवती हो गयी और नील नैन के प्रेम में पागल । नील नैन से विवाह की सोचता है तो पारुल घराना उसे कुचल देता है। भोला के ज़रिये माफिया तक जाता है तो माफिया भी हत्या की सुपारी लेकर नील को मार डालता है। भोला हतप्रभ और सुन्न हो जाता है।\n\nसाँस रोककर पढ़ी जानेवाली इस कथा में सफ़ेदपोश अपराधी और माफिया दोनों हैं। दो जिन्दादिल मुम्बई गये थे-मुर्दा बनकर रह गये। उपन्यास दो मुद्दों के लिए गुलदस्ता में सुरेन्द्र वर्मा एक नवी कथाभूमि लेकर उपस्थित हुए हैं। यह कृति न केवल पाठकों को मोहेगी वरन चौकाएगी भी।
सुरेन्द्र वर्मा - जन्म: 7 सितम्बर, 1941। शिक्षा: एम.ए. (भाषाविज्ञान)। अभिरुचियाँ: प्राचीन और मध्यकालीन भारतीय इतिहास, सभ्यता एवं संस्कृति रंगमंच तथा अन्तर्राष्ट्रीय सिनेमा में गहरी दिलचस्पी। कृतियाँ: 'तीन नाटक', 'सूर्य की अन्तिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक', 'आठवाँ सर्ग', 'शकुन्तला की अँगूठी', 'क़ैद-ए-हयात', 'रति का कंगन' (नाटक); 'नींद क्यों रात भर नहीं आती' (एकांकी); 'जहाँ बारिश न हो' (व्यंग्य); 'प्यार की बातें', 'कितना सुन्दर जोड़ा' (कहानी-संग्रह); 'अँधेरे से परे', 'मुझे चाँद चाहिए', 'दो मुर्दों के लिए गुलदस्ता' और 'काटना शमी का वृक्ष पद्म पंखुरी की धार से' (उपन्यास)। सम्मान: संगीत नाटक अकादेमी और साहित्य अकादेमी द्वारा सम्मानित।
सुरेंद्र वर्माAdd a review
Login to write a review.
Customer questions & answers