Dulle Ki Dhaab

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दुल्ले की ढाब - \nरामसरूप अणखी का 'कोठे खड़क सिंह' जैसे बहुचर्चित उपन्यास के बाद 'दुल्ले की ढाब' भी उतना ही बृहत् तथा लोकप्रिय उपन्यास है। पाँच भागों में विभाजित यह उपन्यास आज़ादी से पहले के भारतीय ग्राम्य-जीवन से लेकर आज़ादी के साठ वर्षों के बाद तक की ग्रामीण पृष्ठभूमि को अपने में समेटता है। कालावधि के बहुत बड़े खण्ड में फैला यह उपन्यास अनेक पात्रों, घटनाओं के माध्यम से बदलते सामाजिक मूल्यों, पारिवारिक रिश्तों की टूटन के साथ धार्मिक स्थानों के नाम पर डेरे की असल भूमिका तथा आर्थिक स्थिति के बिखराव को केन्द्र में लेता है।\nदेश-विभाजन के बाद पंजाब को सदी की सबसे बड़ी त्रासदी को आतंकवाद के रूप में झेलना पड़ा, जिसका परिणाम 'ऑपरेशन ब्लूस्टार' था। अस्सी के दशक के बाद ख़ुशहाल पंजाब कई सामाजिक विषमताओं से घिर गया। संकट की ऐसी स्थिति में युवा पीढ़ी दिशाहीन हो एक ओर नशे की तो दूसरी ओर विदेश पलायन करने लगी।\nरामसरूप अणखी के अनेक पात्र दुल्ला, सरदारो, रामदास, जस्सी सरपंच, अछरा दादू के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान भी बनाते हैं और अग्रणीय भी बनते हैं। अणखी की शैली का एक विशिष्ट अन्दाज़ रहा है कि वे छोटे-छोटे वाक्यों से घटनाओं का ऐसा ताना-बाना बुनते हैं कि पाठक रोमांचित हो जाता है। कड़ी-दर-कड़ी घटनाओं की ऐसी मज़बूत श्रृंखला बनती है कि एक बार उपन्यास पढ़ना आरम्भ किये जाने पर अन्त तक उसे छोड़ा नहीं जा सकता।\nदुल्ले की बनायी 'ढाब' पंजाब की धार्मिक तथा सांस्कृतिक भाईचारे के केन्द्र में बदल जाती है, जहाँ फिर राजनीति और कूटनीति के अनेक दाँवपेच भी खेले जाते। एक अत्यन्त पठनीय एवं संग्रहणीय कृति।

रामसरूप अणखी - जन्म: 28 अगस्त, 1932 बरनाला (पंजाब)। शिक्षा: पंजाबी में एम.ए. व बी.टी. (चण्डीगढ़ यूनिवर्सिटी)। स्कूल अध्यापक रहे। राम सरूप अणखी पंजाबी के बहुमुखी साहित्यकार रहे। उनके अबतक प्रकाशित 40 पुस्तकों में 15 उपन्यास; 12 कहानी-संग्रह; 4 काव्यसंग्रह; यात्रा वृत्तान्त; आत्मकथा सहित उनकी अन्य सम्पादित पुस्तकें भी शामिल हैं। उपन्यास 'कोठे खड़क सिंह' के लिए वर्ष 1987 में 'साहित्य अकादेमी पुरस्कार'। उपन्यास 'प्रतापी' पर 10 एपीसोड का पंजाबी सीरियल प्रसारित। अनेक कहानियों पर टी.वी. कार्यक्रम निर्मित। गुरुनानक देव यूनिवर्सिटी, भारतीय भाषा परिषद, (कोलकाता), भाषा विभाग (पटियाला) व पंजाबी साहित्य अकादमी (लुधियाना) आदि संस्थाओं से सम्मानित। अवसान: 14 फ़रवरी, 2010 बरनाला। (अनुवादक) जसविन्दर कौर बिन्द्रा - हिन्दी, पंजाबी दोनों भाषाओं में समान रूप से लेखन व अनुवाद। 35 से अधिक पुस्तकों का अंग्रेज़ी, हिन्दी एवं पंजाबी में अनुवाद के साथ-साथ आलोचना की मौलिक पुस्तकें तथा बाल साहित्य प्रकाशित। पंजाबी अकादमी (दिल्ली) से अनुवाद पुरस्कार से सम्मानित। हिन्दी, पंजाबी की सभी स्तरीय तथा साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में निरन्तर समीक्षाएँ, लेख तथा अनुवाद प्रकाशित।

रामसरूप आँखी

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