हेलेन एडम्स केलर (27 जून 1880-1 जून 1968) की आत्मकथा दुनिया की सर्वाधिक प्रेरणाप्रद किताबों में शुमार की जाती है। इसका विश्व की बहुत सारी भाषाओं में अनुवाद हुआ है। केलर ने बीमारी के चलते शैशवावस्था में ही, जब वह उन्नीस महीने की थीं, देखने और सुनने की क्षमता गँवा दी थी। लेकिन सात बरस की उम्र से, उन्होंने विकलांगता जनित लाचारी से पार पाना शुरू किया जब उन्हें पहली शिक्षिका ऐनी सुलिवन मिलीं, जो हमेशा उनको साथी भी रहीं। केलर ने सुलिवन से भाषा सीखी, पढ़ना-लिखना सीखा। वह कला स्नातक की उपाधि अर्जित करने वाली पहली दृष्टिबाधित एवं बधिर थीं। उन्होंने विपुल लेखन किया है। साथ ही विकलांगों के हितों तथा अधिकारों की प्रवक्ता के रूप में भी वह दुनिया भर में प्रसिद्ध हुईं। विकलांगों के अधिकारों के लिए उन्होंने बहुत से व्याख्यान दिये, संस्था बनायी और अनेक देशों की यात्रा की। 1971 में उन्हें बेहद प्रतिष्ठित अलबामा वुमेन्स हॉल ऑफ फेम में शामिल किया गया। उनकी आत्मकथा के नाट्य रूपान्तरण हुए और उस पर फिल्म भी बनी। कहना न होगा कि केलर का कृतित्व और जीवन दोनों प्रेरणादायी हैं।
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