यदि 27 अक्टूबर 1947 की सुबह को भारतीय वायु सेना नई दिल्ली से श्रीनगर, जहां पर पाकिस्तानी हमलावरों द्वारा, वहां कब्ज़ा करने की आशंका बनी हुई थी, हमारे सैनिकों को हवाई मार्ग से नहीं ले जाती, तो इस में कोई संदेह नहीं है कि भारत का इतिहास और भूगोल काफी भिन्न होता।\nइस महत्वपूर्ण समय में भारतीय सेना ने और भारतीय वायु सेना ने एक वीरतापूर्ण संयुक्त अभियान द्वारा, पाकिस्तानी हमलावरों की सेना को पीछे मुठने पर मजबूर किया और इस तरह जम्मू-कश्मीर को लुटेरों से बचाया।\n\nस्वतंत्र भारत का पहला युद्ध तब शुरू हुआ जब संकटग्रस्त, स्थानीय राज्य बलों की सहायता के लिए कोई अन्य साधन उपलब्ध नहीं थे। हमलावरों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए गंभीर आपातकालीन परिस्थितियों में भारतीय सेना को हवाई मार्ग से दिल्ली से श्रीनगर ले जाया गया। यहीं से एक लगभग भुला दिए गए युद्ध की गाथा शुरू हुई जो स्वतंत्र भारतवर्ष का सबसे पहला और सबसे लंबा युद्ध था और जिसे स्वतंत्र भारत को लड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था। उस समय नव गठित (नवोदित) भारतीय वायु सेना विभाजन के तुरंत बाद, देश में बड़े पैमाने पर हो रहे दंगों और पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को राहत देने में व्यस्त थी, इन गंभीर स्थितियों में भारतीय वायु सेना ने भारत की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।\n\nयह पुस्तक भारतीय वायु सेना के उस महत्वपूर्ण और अतुलनीय युद्ध में भारतीय वायु सेना द्वारा निनाई गई गौरवपूर्ण भूमिका के इतिहास का वर्णन करती है। इसके लिए लेखक ने श्रमसाध्य और दृढ़ता से सभी छोटी और बठी घटनाओं को मिलाकर भारतीय वायु सेना के इस युद्ध में गौरवशाली रिकॉर्ड को एकत्रित किया है। भारतीय वायु सेना के नीली बर्दी वाले कर्मी युद्ध में उनुकूल मौसम और उच्च ऊंचाई के इलाके में विमान संचालन, आक्रमिक हमलावरों द्वारा प्रस्तुत चुनौतियों को पूरी तरह जानते हुए, कुशलतापूर्वक हमारे सैनिकों को कठिन परिस्थितयों में आपूर्ति पहुंचाई और सैन्य सहायता दी और इस प्रकार भारतीय वायु सेना के सबसे शानदार अभियान को निष्पादित किया। उन्होंने ऐसे कारनामे किए जो अभी तक दोहराए जा रहे है। समय समय पर महत्वपूर्ण लड़ाइयों में, वायु सेना ने सैनिकों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर तैनात करने में सहायता की, और स्थितियों के रुख मोडने के लिए अज्ञात क्षेत्रों में व्यापक वायु सहायता प्रदान की।\n\nयुद्ध के दौरान भारतीय वायुसेना के पायलट, इंजीनियर, तकनीशियन और अन्य कर्मी अपने कार्यों के फलस्वरूप प्रतिष्ठित और किंवदंती बन गए और इस प्रकार आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित किया। लेकिन दुख की बात है कि भारतीय वायुसेना के अंदर और उसके बाहर इस विषय में बहुत कम लिखा गया है या कम जानकारी है कि इतने कम लोगों ने हमारे इतिहास को ऐसा आकार दिया। पहली बार, इसे लेखक ने व्यापक शोध और साक्षात्कारों से बड़ी मेहनत से इकठ्ठा कर के इस युद्ध का इतिहास लिखा है।
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