Ek Sahityik Ke Prempatra

  • Format:

एक साहित्यिक के प्रेमपत्र - \nभारती जी के पत्रों का यह संकलन मात्र संकलन नहीं है, यह तो प्रतिबिम्ब है उस बिम्ब का जिसे 'प्रेम' कहा जाता है, जिसे शास्त्रों ने अगम, अगोचर और अनिर्वचनीय कहा है, और जिसे युगों-युगों से साहित्यकारों और कलाकारों ने अपने-अपने ढंग से अभिव्यक्त करने की कोशिश की है, फिर भी यह लगता रहा है कि बहुत कुछ है जो अनकहा रह गया है... इन पत्रों से आप जान सकेंगे कि आपके प्रिय रचनाकार डॉ. धर्मवीर भारती की सारी सृजन-यात्रा किस खोज में लगी रही थी, उनकी जीवनदृष्टि किन क्षितिजों को मापना चाह रही थी, उन्हें उन कौन से मूल्यों की तलाश थी जो उनके अस्तित्व की वास्तविक पहचान बन सकें। क्या वह रचनाकार अपने सत्य को पहचान सका? जी सका? उससे साक्षात्कार कर सका? या फिर जीवन भर किन्हीं बीहड़ों और कन्दराओं में भटकता ही रहा?...\nधर्म, कर्म, मान, मर्यादा, दायित्व, विधि-विधान सबकुछ स्वयंभू प्रेम-तत्त्व पर न्योछावर करके उसे सम्पूर्ण रूप में जीकर जानना चाहा था भारतीजी ने। मेरी सार्थकता तो केवल इतनी थी कि मैं उन्हें वह सब दे सकी, जिसको आधार बना कर उन्होंने इस तत्त्व का साक्षात्कार करने की कोशिश की...।\nबड़ी बेख़ौफ़, बेलौस, बेख़बर, निश्चिन्त यात्रा थी वह! अब इन पत्रों के माध्यम से फिर-फिर उस यात्रा पर निकल पड़ती हूँ। हर बार पाती हूँ कि ये वही पगडंडियाँ हैं, वही मोड़-दर-मोड़ लेते रास्ते हैं जिन पर सदियों से चलती चली आयी हूँ....सदियों तक चलती चली जाऊँगी..... —पुष्पा भारती

Customer questions & answers

Add a review

Login to write a review.

Related products

Subscribe to Padhega India Newsletter!

Step into a world of stories, offers, and exclusive book buzz- right in your inbox! ✨

Subscribe to our newsletter today and never miss out on the magic of books, special deals, and insider updates. Let’s keep your reading journey inspired! 🌟