इस किताब में नहीं लिख पाने के दुख से जूझते एक लेखक का मौलिक प्रेम प्रसंग है। वह लेखक एक लड़की से प्रेम करता है। प्रेम को जीने के साथ-साथ उसके बिछड़ाव को भी जीता है। यह बिछड़ाव उसे उन तमाम लड़कियों के जीवन तक लेकर जाता है जो उसकी जीवन में आई होती हैं। इस दौरान दर्जनों प्रेम कहानियाँ पैदा होती हैं।\n\n\nवह प्रेम के होने और नहीं होने की ऊहापोह में कई तरह के प्रेम को जीता है। बावजूद इसके उस लड़की तक नहीं पहुँच पाता जिसे वह सच्चे अर्थों में प्रेम करता है। एक समय बाद पहुँचता भी है पर उसके हृदय और आत्मा को नहीं छू पाता है। इस तरह वह न चाहते हुए भी पुनः उसी नहीं लिख पाने के दुख के कोलाहल में लौट आता है।\n\n\nयह प्रेम में मिला दुख उसके नहीं लिख पाने के दुख से भी बड़ा होता है और इस दुख के साथ उसका लेखक उसमें आहिस्ता-आहिस्ता लौटने लगता है। वह प्रेम में मिले बिछड़ाव के दुख से दबा हुआ महसूस करता है और ख़ुद को अपने लेखक के साथ, एक अँधेरे कमरे में, एक लंबे समय के लिए बंद कर लेता है।\n\n\nकुछ दिनों बाद जब वह खिड़की खोलता है तो उसके मन का मौसम बदल चुका होता है और अपनी राइटिंग डेस्क पर एक पांडुलिपि रखी हुई पाता है। इस पांडुलिपि को देखकर वह ख़ुशी और उन्माद से चीख़ पड़ता है। न लिख पाने का दुख, मन की पीड़ाएँ और विचारों की सारी जद्दोजहद ख़त्म हो जाती है।\n\n\nएक आश्वस्ति का भाव पैदा होता है, और उसकी आँखें चमक उठती हैं। इस तरह से वह एक बार फिर से ख़ुद में लौटता है। वह लेखक जो तीन साल पहले मर चुका होता है, उसके भीतर एक बार फिर से जी उठता है।\n\n\nइस किताब में मनाली का मौसम, प्रेम के अनगिनत क़िस्से और भावनाओं की ज़बरदस्त ऊहापोह है।\n\n\nप्रेम के नए बनते-बिगड़ते समीकरण को समझने के लिए इस किताब को ज़रूर पढ़ें।
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Sanjaya ShepherdAdd a review
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