एक था फेंगाड्या - सभ्यता के विकास का इतिहास सद्भाव, मैत्री और संघटन पर आधारित रहा है। लाखों वर्ष गुफाओं में रहनेवाले आदिमानव ने भी अपनी संवेदनशीलता और साथ रहने की भावना के वशीभूत होकर अपने सामाजिक जीवन का प्रारम्भ और तात्कालिक चुनौतियों का सामना किया था। पहली बार किसी लाचार को सहारा देने और बीमार को स्वस्थ करने का विचार जिस मनुष्य के मन में आया, वहीं से मानवीय करुणा और एक दूसरे का सम्मान करने की संस्कृति प्रारम्भ हुई जिसने मानव को आज सभ्यता के शिखर तक पहुँचाया। मराठी के प्रसिद्ध साहित्यकार श्री अरुण गद्रे को, जो पेशे से डॉक्टर भी हैं, इस विचार ने ज़यादा रोमांचित किया कि किसी अपंग को उस युग के व्यक्ति ने किस प्रकार स्वस्थ किया होगा और एक नये प्रयोग का विचार उसके मस्तिष्क में कैसे आया होगा। कैसा रहा होगा वह मनुष्य, वह हीरो, जिसके हृदय में पहली बार मैत्री मदद का झरना फूटा होगा। तमाम सन्दर्भ ग्रन्थों के अध्ययन और अपनी साहित्यिक प्रतिभा से डॉ. गद्रे ने मराठी में इस अद्भुत कृति 'एक था फेंगाड्या' का सृजन किया। यह उपन्यास मानवीय संवेदना, उसकी पारस्परिकता तथा अग्रगामिता को विशेष तौर पर रेखांकित करता है। प्रागैतिहासिक काल की कथावस्तु पर केन्द्रित इस उपन्यास को पढ़ते हुए पाठक के मन में अनेक जिज्ञासाएँ पैदा होती हैं जिनका समाधान भी उपन्यास में मिलता चलता है। मराठी के इस उपन्यास को कुशलता से हिन्दी में अनूदित किया है प्रसिद्ध लेखिका श्रीमती लीना महेंदले ने। आशा है हिन्दी के प्रबुद्ध पाठक इसका भरपूर स्वागत करेंगे।
अरुण गद्रे – पुणे महाराष्ट्र में 11 अक्टूबर, 1957 में जनमे डॉ. अरुण गद्रे ने चिकित्सा शास्त्र में मुम्बई विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर (एम.डी.) उपाधि प्राप्त की। पिछले बीस वर्षों से महाराष्ट्र के ग्रामीण क्षेत्रों में एक सफल चिकित्सक के रूप में कार्यरत हैं। पेशे से चिकित्सक होने के साथ-साथ डॉ. गद्रे मराठी के एक चर्चित लेखक भी हैं। उन्होंने साहित्य में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। अब तक मराठी में उनकी बारह से भी अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें 'घटचक्र', 'एक था फेंगाड्या', 'वधस्तम्भ' आदि उपन्यास शामिल हैं। 'एक था फेंगाड्या' अंग्रेज़ी में 'ए टेल ऑफ़ फेंगाडो' नाम से अनूदित होकर अमेरिकन प्रेस से प्रकाशनाधीन है। डॉ. गद्रे महाराष्ट्र राज्य पुरस्कार (1993-94) से सम्मानित हैं। अनुवादक - लीना मेहेंदले जन्म: 31 जनवरी, 1940 वरणगाँव (महाराष्ट्र)। शिक्षा : एम.एससी. (भौतिकी), एम.एससी. प्रोजेक्ट प्लानिंग। 1974 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में प्रवेश। महाराष्ट्र सरकार में कलेक्टर, कमिश्नर (उद्योग विभाग, स्वास्थ्य विभाग आदि में)। देवदासी आर्थिक पुनर्वास कार्यक्रम के संचालन में सराहनीय कार्य। प्रकाशन: ‘फिर वर्षा आयी’ (बाल-कथा), 'देवदासी' (कहानी), 'आनन्दलोक' (काव्यानुवाद), 'सुवर्ण पंछी' (रोचक सन्दर्भ) आदि अनेक कृतियाँ।
अरुण गद्रे अनुवाद लीना महेंदलेAdd a review
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