‘फक्कड़: द पैरलल लाइव्स’ में दो समांतर जिंदगियों की तुलनात्मक कहानी है। कस्बों और शहरों में रहने वाली आबादी आदिवासी क्षेत्र को उतना ही जानती है, जितना मीडिया में उसे दिखाया जाता है। आदिवासी क्षेत्र की स्थिति राजनीति, सामंतवाद, पूंजीवाद और विचारधारा के आधार पर तय होती है। इसे ही लोग अंतिम सत्य भी मानते हैं। यह उपन्यास एक कस्बाई-शहरी क्षेत्र की जिंदगी और बस्तर के पीड़ित होती जिंदगियों की समांतर कहानी कहती है। यह कहानी उतनी ही पारदर्शी है जितना कि दर्पण। इसमें उन अनुभवों को शामिल किया गया है, जो प्रत्यक्ष हैं या थे। उन पहलुओं को छुआ गया है, जो नजरअंदाज किए जाते हैं, या तो जान-बूझकर या सहमति से। कहानी में एक पृष्ठभूमि का निर्माण किया गया है, जहाँ कस्बाई जिंदगी और तथाकथित आधुनिक समाज द्वारा परिभाषित ‘जंगली जिंदगी’ समांतर रूप से जिंदगी और मौतों को संग लेकर चलती है।.
???? ?????? ?????? ?? ??? ?? ???? ???? ???? ???? ????? ?????? ??????? ?????? ??? ???? ?????? ?? ???????? ??? ??? ?????? ??????? ???????????, ??????? ?? ????? ??????? ??? ???? ???????? ???? ????? ???? ?? ???? ????? ??????? ??? ???? ?? ???? ???? ?? ?????? ?? ??? ???? ????? ???? ??? ???? ???? ?????????? ?? ???? ?? ?? ??-???????? ?? ??????? ?? ?? ?? ???? ??????? ?? ???.
Suraj Prakash DadsenaAdd a review
Login to write a review.
Customer questions & answers