फ़रिश्ता - यह उपन्यास शब्दों का जाल मात्र नहीं है, वरन् इसमें बेहद कसी हुई कहानी के साथ उच्च कोटि का व्यावहारिक दर्शन एवं विचार भी हैं। युवा शक्ति के धुर राष्ट्रवादी विचारों ने जहाँ अन्धविश्वासों एवं पुरातनपन्थी सोच पर चोट की है, वहीं प्यार, शादी एवं दोस्ती की नयी राहें खोलने के प्रयास भी किये हैं। इसमें लौकिक-पारलौकिक जीवन पर विचार-विमर्श के साथ प्रकृति को भी केन्द्र में लाने का प्रयास किया गया है। विभिन्न सामाजिक एवं धार्मिक समस्याओं को काफ़ी तटस्थ होकर परखा एवं पिरोया गया है। मनुष्य के सम्मुख आसन्न विश्वव्यापी संकट पर भी गम्भीरतापूर्वक चिन्तन किया गया है। भारतीय लेखन की परम्परा से थोड़ा हटते हुए इसमें आन्दोलन एवं क्रान्ति का भी अत्यन्त रोचक तरीके से चित्रण किया गया है। पाठक इस पूरे उपन्यास में एक नवीन ऊर्जा एवं परिवर्तन का अहसास शिद्दत से करेगा। सर्वथा स्वागत योग्य कृति ।
कपिल ईसापुरी - जन्म : उत्तर प्रदेश के अमरोहा ज़िले के एक ग्रामीण परिवार में। शिक्षा : बी. टेक. (आई.ई.टी., लखनऊ),MJMC (पत्रकारिता), लखनऊ। सरकारी पद : डिप्टी जेलर के पद पर बरेली, लखनऊ एवं बाराबंकी की जेल पर तैनात रह चुके हैं। वर्तमान में असिस्टेंट कमिश्नर SGST के पद पर उ.प्र. में कार्यरत । प्रकाशन : वर्ष 2013 में 'फ़रिश्ता' उपन्यास आया, जो काफ़ी चर्चितरहा। लेखक ने PK फ़िल्म मेकर्स पर कॉपीराइट का केस दिल्लीहाईकोर्ट में कर रखा है। लेखक के अनुसार PK फ़िल्म उन्हीं के उपन्यास पर आधारित है। अब यह उपन्यास भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित किया जा रहा है। वर्ष 2018 में उपन्यास 'अपराधी' भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित। लेखन: 'बूढ़ा', 'सफ़र का अन्त', 'अभागी' एवं 'पतन' (कहानियाँ); लेखक राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय विषयों के विशेषज्ञ हैं। उनके अन्तर्राष्ट्रीय विषयों पर सैकड़ों आलेख विभिन्न समाचार-पत्रों में प्रकाशित हो चुके हैं। सम्मान : एड्स दिवस पर राज्य एड्स नियन्त्रण सोसायटी (2008); लखनऊ द्वारा 'सफ़र का अन्त' (कहानी) को पुरस्कृत किया गया ।
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