Ganga Ratan Bidesi (Bhojpuri)

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गंगा रतन बिदेसी - \nउन्नीसवीं सदी के बीच में कर के बोझ में पिसा के बेघरबार मूनेसर एगो अईसन बड़ ढँका में आपन मूड़ी डाल दिहले कि जेकरा से निकले में उनकर चार पुसूत के भाग अझूरा गईल। भारत में अंगरेज उपनिवेसी सरकार के चंगुल से बाँचे खाती ऊ गिरमिटया मजूर बनके नटाल (अफीरका) के राह धईले। लेकिन ओहिजो कहे उपनिवेसी जाँता में फँसल उनकर परिवार लागल रहल आपन जान माल बचावे में। मूनेसर के पोता रतन दुलारी गाँधी बाबा के संग धईलन अउर उनके संगे आ गईलें भारत। सतयागिरही बनके लसरात उनकर जिनगी के ठाँव-मिलल आपन पूरान साथी गंगझरिया के अँचरा में जे बनारस में मोसमात हो के हेमवती देवी आसरम में पड़ल रहे। अधेड़ उमीर में एगो मोसमात के संगे घर बसल खेजुआ (बनारस) गाँव में अभी भाग के जरल जड़ ठीक से माटीयो न धईले रहे कि उनकर सब खेत चढ़ गईल रेहन प। साहूकार अउर आपन बेमरिया बेटा के ईलाज के भँवर में फँस गईल रतन दुलारी के बेटा गंगा रतन बिदेसी। पईसा कमात-जोड़त हाबड़ा के लोहा भट्ठी से पोसता बाज़ार, अउरी सेयालदह एसटेसन से दाजिलिंग के चाह-बगान कहाँ-कहाँ न ले गईल ओकर भाग ओकरा के। अउर ले जा के बिगलख कलकत्ता के परेसीडेंसी जेहल में। सय साल के समय-काल में बन्हाईल, ई गाथा ह आस में गुँथाईल अईसन भाग के, जेकर एगो छोर रतन दुलारी के हाँथ में रहे त दोसरका गंगा रतन बिदेसी के हाँथ में।

मृत्युंजय - मृत्युंजय कुमार सिंह पश्चिम बंगाल कैडर के एक वरिष्ठ आई.पी.एस. अधिकारी हैं जो अपनी गँवई संवेदना और शहरी रहन-सहन के बीच जीवन को समझने में लगे हैं। कभी भोजपुरी गीतों की रचना ('ऐ बबुआ' और 'रुक जा सजनवा' भोजपुरी गीतों का एलबम-T-Series) और अन्य भाषाओं के लोक-गीतों में वो अपनी परम्परा खोजते हैं, तो कभी लेख, कविता 'किरचें' काव्य संग्रह, अनुपम प्रकाशन, पटना एवं नाटक 'देव-सभा', 2015 के ज़रिये अपनी पहचान। प्रतिभा को अथक प्रयास भर मानने वाले मृत्युंजय ने कालिदास के 'मेघदूत' के अंग्रेज़ी (Meghdoot : The Emissary of Sunderance, Trafford Publishing, USA 2012) और हिन्दी ('मेघदूत: विरह का दूत'-राजकमल प्रकाशन, 2014) रूपान्तर का भी साहस जुटाया। सरकारी नौकरी को लोगों की सेवा का एक और माध्यम मानने वाले मृत्युंजय ने सदैव सत्ता के खुरदरे हाथों से भी संगीत और साहित्य की रचना की है, और हमेशा ये माना है कि हर विद्रूप पत्थर में एक सुन्दर मूर्ति का अंश होता है। 'आस के आभास' मृत्युंजय का दूसरा काव्य-संग्रह है। 'गंगा रतन बिदेसी' मृत्युंजय का पहला उपन्यास है।

मृत्युंजय

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