ग़मे-हयात ने मारा - \nहिन्दी की चर्चित कथाकार राजी सेठ का नवीनतम कहानी-संग्रह।\nराजी ने अपनी कहानियों में वर्तमान की भूमि पर जमकर संघर्ष करने के लिए गत और आगत मूल्यों के विध्यात्मक अर्थों की खोज की है। वास्तव में विध्यात्मकता स्वयं नकारात्मक मूल्यों का निषेध है। यह प्रहार की एक शैली भी हो सकती है, जिसे राजी ने भलीभाँति जाना-समझा है। व्यक्ति और परिवार की सीमा में वे बहुत कुछ असीम कहती हैं। वे सपाट मॉडल रचकर एक रूढ़ि को तोड़ते हुए दूसरी रूढ़ि नहीं बनातीं। पुरुष की निष्करुणता और करुणा को एक साथ प्रचलित उपादानों के विभिन्न संयोजनों में रखकर अनुभव की पूर्णता और सृजनात्मक सामर्थ्य का परिचय देती हैं।\nराजी उन लेखकों में से नहीं हैं जो चीज़ों को स्थानभ्रष्ट, रूपभ्रष्ट, अनुभवभ्रष्ट करने को कला की क्षमता मानते हैं। वे नैसर्गिक के नियोजन द्वारा अनैसर्गिक का प्रतिवाद रचती हैं। अपने लेखन में न तो वे स्त्री होने से इनकार करती हैं, न उसे नष्ट करती हैं बल्कि उसे अपने जैविक नैसर्गिक रूप में स्थित करके उसकी शक्ति और सम्भावना का सृजनात्मक उपयोग करती हैं। इस स्वीकार के भीतर कितने ही नकार रचते हुए राजी ने यथास्थिति में जितने हस्तक्षेप किये हैं उन्हें उनकी आधुनिक पहचान के लिए देखना ज़रूरी है। राजी की स्त्री ने पराजित पुरुष को, बल्कि व्यवस्था को, जितनी भंगिमाओं में उकेरा है और अपनी विध्यात्मक दृष्टि से जो मूल्यवत्ता अर्जित की है उससे नये-नये सृष्ट्यर्थ प्रकट हुए हैं। वे स्त्री की खोट को भी पहचानने की कोशिश करती हैं और भरसक निरपेक्ष बनी रहकर अधिक विश्वसनीय होती हैं।—प्रभाकर श्रोत्रिय
राजी सेठ - जन्म : नौशहरा छावनी (अविभाजित भारत) 1935 । शिक्षा : एम.ए. अंग्रेज़ी साहित्य, विशेषाध्ययन तुलनात्मक धर्म और भारतीय दर्शन। लेखन : जीवन के उत्तरार्द्ध में, 1974 से आरम्भ। सभी विधाओं में लेखन। भाषा-ज्ञान : अंग्रेज़ी, हिन्दी, पंजाबी, उर्दू, गुजराती। प्रकाशन : 13 कहानी संग्रह, 2 उपन्यास, 2 लेख संग्रह, कविता संग्रह प्रकाशनाधीन। अनुवाद : अंग्रेज़ी सहित कई योरोपीय और भारतीय भाषाओं में रचनाओं का अनुवाद। स्वयं भी अनेक अनुवाद किये हैं, जिनमें रिल्के के 100 पत्रों का अनुवाद प्रमुख है। कई पुस्तकें एम.ए. के पाठ्यक्रम में। कृतित्व पर कई शोधग्रन्थ। सम्पादन : साहित्यिक पत्रिका 'युगसाक्षी' लखनऊ का 1987 से आठ वर्ष तक सह-सम्पादन। भारतीय कहानियाँ (1987-88) भारतीय ज्ञानपीठ के लिए सम्पादित। प्रमुख सम्मान : हिन्दी अकादमी सम्मान, भारतीय भाषा परिषद् पुरस्कार, अनन्त गोपाल शेवड़े पुरस्कार, वाग्मणि सम्मान, रचना पुरस्कार, प्रथम टैगोर लिटरेरी अवार्ड। उपलब्धियाँ : फ़ेलो, भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला, 1996-98
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